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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण अपने प्रयाण गीत में वे क्रांतिकारी भावनाओं को व्यक्त करते हुए वे कहते हैं १७६ " "नया मोड़ हो उसी दिशा में, नयी चेतना फिर जागे, तोड़ गिराएं जीर्ण-शीर्ण जो अंधरूढ़ियों के धागे । आगे बढ़ने का अब युग है, बढ़ना हमको सबसे प्यारा ॥' जन्म, विवाह एवं मृत्यु के अवसर पर लाखों-करोड़ों रुपयों को पानी भांति बहाया जाता है । इन झूठे मानदंडों को प्रतिष्ठित करने से समाज की गति अवरुद्ध हो जाती है । 'नए मोड़' अभियान के माध्यम से आचार्य तुलसी ने समाज की प्रदर्शनप्रिय एवं आडम्बरप्रधान मनोवृत्ति को संयम, सादगी एवं शालीनता की ओर मोड़ने का भागीरथ प्रयत्न किया है। आचार्य तुलसी का चिन्तन है कि मानव अपनी आंतरिक रिक्तता पर आवरण डालने के लिए प्रदर्शन का सहारा लेता है । उन्होंने समाज में होने वाले तर्कहीन एवं खोखले आडम्बरों का यथार्थ चित्रण अपने साहित्य में अनेक स्थलों पर किया है । यहां उसके कुछ बिन्दु प्रस्तुत हैं, जिससे समाज वास्तविकता के धरातल पर खड़ा होकर अपने आपको देख सके | निम्न विचारों को पढ़ने से समझा जा सकता है कि वे समाज की हर गतिविधि के प्रति कितने जागरूक हैं ? जन्म दिन पर होने वाली पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण आचार्य तुलसी की दृष्टि में सम्यक् नहीं है । इस पर प्रश्नचिह्न उपस्थित करते हुए वे कहते हैं – " केक काटना, मोमबत्तियां जलाना या बुझाना आदि जैन क्या भारतीय संस्कृति के भी अनुकूल नहीं है । फिर भी आधुनिकता के नाम पर सब कुछ चलता है । कहां चला गया मनुष्य का विवेक ? क्या यह आंख मूंदकर चलने का अभिनय नहीं है ?" शादी आज सादी नहीं, बर्बादी बनती जा रही है। विवाह के अवस पर होने वाले आडम्बरों एवं रीति-रिवाजों की एक लम्बी सूची प्रस्तुत करते हुए वे समाज को कुछ सोचने को मजबूर कर रहे हैं "विवाह से पूर्व सगाई के अवसर पर बड़े-बड़े भोज, साते या बींटी में लेन-देन का असीमित व्यवहार, बारात ठहराने एवं प्रीतिभोजों के लिए फाइव स्टार (पंचसितारा ) होटलों का उपयोग, घर पर और सड़क पर समूहनृत्य, मण्डप और पण्डाल की सजावट में लाखों का व्यय, कार से उतरने के स्थान से लेकर पण्डाल तक फूलों की सघन सजावट, बिजली की अतिरिक्त जगमगाहट, कुछ मनचले लोगों द्वारा बारात में शराब का प्रयोग, एक-एक खाने में सैंकड़ों किस्म के खाद्य, अनेक प्रकार के पेय, प्रत्येक दस मिनट के १. आह्वान पृ० १३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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