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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
१७५ सामाजिक क्रांति को घटित करने के कारण वे युगप्रवर्तक एवं युगप्रधान के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। उन्होंने सदैव युग के साथ आवश्यकतानुसार स्वयं को बदला है तथा दूसरों को भी बदलने की प्रेरणा दी है। नया मोड़
. आडम्बर, प्रदर्शन एवं दिखावे की प्रवृत्ति से सामाजिक परम्पराएं इतनी बोझिल हो जाती हैं कि उन्हें निभाते हुए सामान्य व्यक्ति की तो आर्थिक रीढ़ ही टूट जाती है और न चाहते हुए भी उसके कदम अनैतिकता की ओर अग्रसर हो जाते हैं। आचार्य तुलसी सामाजिक कुरीतियों को जीवनविकास का सबसे बड़ा बाधक तत्त्व मानते हैं।
समाज के बढ़ते हुए आर्थिक बोझ तथा सामाजिक विकृतियों को दूर करने हेतु उन्होंने सन १९५८ के कलकत्ता प्रवास में अणुव्रत आंदोलन के अन्तर्गत 'नए मोड़' का सिंहनाद फूंका।
आचार्य तुलसी के शब्दों में 'नए मोड़' का तात्पर्य है-"जीवन दिशा का परिवर्तन । आडम्बर और कुरूढ़ियों के चक्रव्यूह को भेदकर संयम, सादगी की ओर अग्रसर होना । विषमता और शोषण के पंजे से समाज को मुक्त करना । अहिंसा और अपरिग्रह के माध्यम से जीवन-विकास का मार्ग प्रस्तुत करना । जीवन की कुण्ठित धारा को गतिशील बनाना।""
दहेज प्रथा को मान्यता देना, शादी के प्रसंग में दिखावा करना, मृत्यु पर प्रथा रूप से रोना, पति के मरने पर वर्षों तक स्त्री का कोने में बैठे रहना, विधवा स्त्री को कलंक मानना, उसका मुख देखने को अपशकुन कहना --आदि ऐसी रूढ़ियां हैं, जिनको आचार्य तुलसी ने इस नए अभिक्रम में उनको ललकारा है। आज ये कुरूढ़ियां उनके प्रयत्न से अपनी अन्तिम सांसें ले रही हैं।
इस नए अभिक्रम की विधिवत् शुरुआत राजनगर में तेरापंथ की द्विशताब्दी समारोह (१९५९) की पुनीत बेला में हुई। आचार्य तुलसी ने 'नए मोड़' को जन-आंदोलन का रूप देकर नारी जाति को उन्मुक्त आकाश में सांस लेने की बात समझाई। बहिनों में एक नयी चेतना का सचार किया। नए मोड़ के प्रारम्भ होने से राजस्थानी बहिनों का अपूर्व विकास हुआ । जो स्त्री पर्दे में रहती थी, शिक्षा के नाम पर जिसे एक अक्षर भी नहीं पढ़ाया जाता था, यात्रा के नाम पर जो स्वतन्त्र रूप से घर की दहलीज भी नहीं लांघ सकती थी, उस नारी को सार्वजनिक मंच पर उपस्थित कर उसे अपनी शक्ति और अस्तित्व का अहसास करवा दिया।
१. जैन भारती, १७ सित० १९६१ ।
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