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________________ १७० आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण उपज है ? दहेज की इस यात्रा का अन्त इसी बिन्दु पर नहीं होता.... .... अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक यातनाएं, मार-पीट, घर से निकाल देना और जिन्दा जला देना, क्या एक नारी की नियति यही है" । पिशाचिनी की भांति मुंह बाए खड़ी इस समस्या के उन्मूलन के प्रति आचार्य तुलसी आस्थावान् हैं। दहेज उन्मूलन हेतु प्रतिकार के लिए समाज को दिशाबोध देते हुए वे कहते हैं-"जहां कहीं, जब कभी दहेज को लेकर कोई अवांछनीय घटना हो, उस पर अंगुलि निर्देश हो, उसकी सामूहिक भर्सना हो तथा अहिंसात्मक तरीके से उसका प्रतिकार हो । ऐसे प्रसंगों को परस्मैपद की भाषा न देकर आत्मनेपद की भाषा में पढ़ा जाए, तभी इस असाध्य बीमारी से छुटकारा पाने की सम्भावना की जा सकती है।'' जातिवाद "मेरा अस्पृश्यता में विश्वास नहीं है। यदि कोई अवतार भी आकर उसका समर्थन करे तो भी मैं इसे मानने को तैयार नहीं हो सकता । मेरा मनुष्य की एक जाति में विश्वास है"--आचार्य तुलसी की यह क्रांतवाणी जातिवाद पर तीखा व्यंग्य करने वाली है। आचार्य तुलसी समता के पोषक हैं अतः उन्होंने पूरी शक्ति के साथ इस प्रथा पर प्रहार कर मानवीय एकता का स्वर प्रखर किया है। लगभग ४५ वर्षों से वे समाज की इस विषमता के विरोध में अपना आंदोलन छेड़े हुए हैं। इस बात की पुष्टि निम्न घटना प्रसंग से होती है सन् १९५४,५५ की बात है। आचार्यश्री के मन में विकल्प उठा कि मानव-मानव एक है, फिर यह भेद क्यों ? यह विचार मुनिश्री नथमलजी (युवाचार्य महाप्रज्ञ) के समक्ष रखा। उन्होंने एक पुस्तिका लिखी, जिसमें जातिवाद की निरर्थकता सिद्ध की गयी। पुस्तिका को देखकर आचार्यप्रवर ने कहा- अभी इसे रहने दो, समाज इसे पचा नहीं सकेगा। दो क्षण बाद फिर दृढ़ विश्वास के साथ उन्होंने कहा- "जब इन तथ्यों की स्थापना करनी ही है तो फिर भय किसका है ? ऊहापोह होगा, होने दो। किताब को समाज के समक्ष आने दो। इससे मानवता की प्रतिष्ठा होगी। हमारे सामने उन लाखों-करोड़ों लोगों की तस्वीरें हैं, जिन्हें पददलित एवं अस्पृश्य कहकर लोगों ने ठुकरा दिया है। ऐसे लोगों को हमें ऊंचा उठाना है, सहारा देना है।" इस घटना में आचार्य तुलसी का अप्रतिम साहस बोल रहा है। उच्चता और हीनता के मानदंडों को प्रकट करने वाली उनकी ये १. अनैतिकता की धूप : अणुव्रत की छतरी, पृ० १७७ । २. अमृत सन्देश, पृ० ७० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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