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________________ १४६ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण __ आचार्य तुलसी ने भारतीय जनता के समक्ष एक नया जीवन दर्शन एवं नई जीवन-शैली प्रस्तुत की है, जिससे युगीन समस्याओं का समाधान कर सही जीवन-मूल्यों को प्रतिष्ठित किया जा सके । उस जीवन-शैली का नाम है.---'जैन जीवन-शैली' । 'जन' शब्द मात्र से उसे साम्प्रदायिक नहीं माना जा सकता। क्योंकि यह भारतीय संस्कृति के मूल्यों पर आधृत है। इस बात को उनके निम्न उद्धरण के आलोक में भी पढ़ा जा सकता है-"जैन जीवनशैली में संकलित सूत्रों में न तो साम्प्रदायिकता की गंध है और न अतिवादी कल्पना का समावेश है । जीवन-निर्माण में सहायक मानवीय एवं सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात् करने वाली यह जीवन-शैली केवल जैन समाज के लिए ही नहीं है, मानव मात्र को मानवता का मंगल पथदर्शन करने वाली है । यह जीवन-शैली जन-जीवन की सर्वमान्य शैली बन जाए, ऐसी मेरी आकांक्षा इस शैली के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु आचार्य तुलसी की सन्निधि में अनेक शिविरों का समायोजन भी किया जा चुका है, क्योंकि वे मानते हैं कि दीपक बोलता नहीं, जलता है और प्रकाश फैलाता है। यह जीवन-शैली भी बोलने की नहीं, जीने की शैली है। यह न कोई आंदोलन है, न नियमों का समवाय है, न नारा है और न कोई घोषणा-पत्र है। यह है एक मार्ग, जिस पर चलना है और मनुष्यता के शिखर पर आरोहण करना है । जैन जीवन-शैली के निम्न सूत्र हैं..... १. सम्यग् दर्शन २. अनेकांत ३. अहिंसा ४. समण संस्कृति-सम, शम, श्रम ५. इच्छा परिमाण ६. सम्यग् आजीविका ७. सम्यक् संस्कार ८. आहारशुद्धि और व्यसनमुक्ति ९. सार्मिक वात्सल्य राष्ट्रीय विकास आचार्य तुलसी के सम्पूर्ण वाङमय में देश की जनता के नाम सैकड़ों प्रेरक उद्बोधन हैं। वे स्वयं को भारत तक ही सीमित नहीं मानते, वरन् १. लघुता से प्रभुता मिले, पृ० १८७ । २. वही, १८७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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