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राष्ट्र-चिंतन
किसी भी देश की माटी को प्रणम्य बनाने एवं कालखंड को अमरता प्रदान करने में साहित्यकार की अहंभूमिका होती है। धर्मनेता होते हुए भी आचार्य तुलसी राष्ट्र की अनेक समस्याओं के प्रति जागरूक ही नहीं रहे हैं बल्कि उनके साहित्य में वर्तमान भारत की समस्याओं के समाधान का विकल्प भी प्रस्तुत है। इसलिए राष्ट्रीय भावना उत्पन्न करने में उनका साहित्य अपनी अहंभूमिका रखता है।
भारत की स्वतंत्रता के साथ अणुव्रत के माध्यम से देश के नैतिक एवं चारित्रिक अभ्युदय के लिए आचार्य तुलसी ने स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर दिया । विशेष अवसरों पर अनेक बार वे इस संकल्प को व्यक्त कर चुके हैं- "मैं देश की चप्पा-चप्पा भूमि का स्पर्श करना चाहता हूं। अपनी पदयात्राओं के द्वारा मैं देश के हर वर्ग, जाति, वर्ण एवं सम्प्रदाय के लोगों से इंसानियत और भाईचारे के नाते मिलकर उन्हें जीवन के लक्ष्य से परिचित कराना चाहता हूं।'' राष्ट्रीयता
राष्ट्रीयता का अर्थ राष्ट्र की एकता एवं राष्ट्रीय चेतना से है। रामप्रसाद किचल कहते हैं कि यदि कोई कवि या साहित्यकार अपने साहित्य में देश के गौरव तथा उसकी सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना को जगाने का कार्य करता है तो यह कार्य राष्ट्रीय ही है । आचार्य तुलसी की हर पुस्तक में राष्ट्रीय विचारों की झलक स्पष्टतः देखी जा सकती है। राष्ट्र के प्रति दायित्व बोध कराने वाली उनकी निम्न पंक्तियां सबमें जोश एवं उत्साह भरने वाली हैं ---
__ "प्रत्येक व्यक्ति अपने राष्ट्र से कुछ अपेक्षाएं रखता है तो उसे यह भी सोचना होगा कि जिस राष्ट्र से मेरी इतनी अपेक्षाएं है, वह राष्ट्र मुझसे भी कुछ अपेक्षाएं रखेगा। क्या मैं उन अपेक्षाओं को समझ रहा हूं ? अब तक मैंने अपने राष्ट्र के लिए क्या किया ? मेरा कोई काम ऐसा तो नहीं है, जिससे राष्ट्रीयता की भावना का हनन हो---चिन्तन के ये कोण राष्ट्रीय दायित्व का बोध कराने वाले हैं।"3 १. एक बूंद : एक सागर, पृ० १७३१ । २. आधुनिक निबंध, पृ० १९३ । ३. मनहंसा मोती चुगे, पृ० १८६ ।
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