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तेरह है, उतनी ही सरलता से वह बड़े-से-बड़े दार्शनिक पक्ष को उजागर करने में सफल होती है ।
यदि मैं कहूं कि आचार्यजी ध्रुव तारे की तरह केंद्र बिंदु हैं तो यह अनुचित नहीं होगा । आज भी श्रमण परंपरा का पालन करते हुए वे केवल पदयात्रा ही करते हैं । यह अपने आपमें इतिहास रहेगा कि इतनी आयु में एक महापुरुष हर थकान के बावजूद एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक पैदल चलकर ही पहुंचता हो । आचार्यजी ने हाल ही में समय की विशेषता को समझते हुए कुछ ऐसी समणियों की नियुक्ति की है, जिन्हें उन्होंने विमान और कार द्वारा यात्रा करने की अनुमति दी है । यह सचमुच आचार्यजी की वास्तविक समझ और बीसवीं शताब्दी के बढ़ते हुए संचार माध्यमों के साथ अपने आप को मिलाये रखने का प्रयास है ।
आचार्य तुलसी के नाम से लगभग सौ से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इन पुस्तकों में उनके प्रवचन हैं, उद्बोधन हैं, निजी विचार हैं और उनका अपना दर्शन है । दर्शन के क्षेत्र में आचार्यजी का विवेक एकदम अलग है । यह आवश्यक नहीं है कि उससे सहमत हुआ जाय लेकिन महापुरुषों की विशेषता इसी में है कि वे सहमति और असहमति के द्वार निरंतर खुले रखते हैं ताकि प्रत्येक दूसरा चिंतनशील व्यक्ति अपने आपको उनमें खोज सके या उनसे अलग जा सके । ज्ञान का मूल विचार - बिंदु यह है कि एक सृजनशील व्यक्ति दूसरे से भिन्न हो । यदि विचारों के मूल तंत्र में यह गुण नहीं होगा तो वह मात्र श्रोताओं तक ही सीमित रह जाएगा ।
समणी कुसुमप्रज्ञा ने 'आचार्य तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण' शीर्षक से लगभग चार सौ पृष्ठों की एक निर्देशिका तैयार की है । इस निर्देशिका में आचार्य तुलसी द्वारा विभिन्न स्थानों पर दिये गये प्रवचनों और उद्बोधनों की जानकारी है । ये प्रवचन किस तिथि को और किस स्थान पर दिये गये, इसका उल्लेख भी है । इस पुस्तक में यह भी दरसाया गया है कि प्रवचन की विषय-वस्तु क्या है, उसका शीर्षक क्या है और आचार्यजी की किस पुस्तक के कौन से पृष्ठ पर इसे प्राप्त किया जा सकता है । चार सौ पृष्ठों के समग्र ग्रंथ में ये सारे संकेत हैं। इसके साथ ही जब आचार्य तुलसी के साहित्य और प्रवचनों के लिए चार सौ पृष्ठों का मात्र निर्देशन खंड हो तो इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उनका समूचा साहित्य कितना विशाल और विस्तृत होगा । समणी कुसुमप्रज्ञा से मुझे ज्ञात हुआ कि इसमें एक विस्तृत भूमिका भी रहेगी, जिसमें उनके गद्य साहित्य का पर्यालोचन और मूल्यांकन रहेगा । वह भूमिका भी लगभग ३०० पृष्ठों की होगी । निर्देशिका को शुरू से अंत तक देखने के बाद कुसुमप्रज्ञा के धैर्य और कार्यक्षमता से मैं बहुत प्रभावित हुआ । इतनी सामग्री विभिन्न
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