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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन पदार्थों या अधिकारों की सुरक्षा न करे । अर्थ और पदार्थ का अर्जन और संरक्षण हिंसा के बिना नहीं हो सकता।..."इस सन्दर्भ में महावीर ने विवेक दिया तुम अहिंसा का प्रारंभ उस बिन्दु पर करो, जहां तुम्हारे जीवन की अनिवार्यताओं में भी बाधा न आए और तुम क्रूर व आक्रामक भी न बनो।' इस दृष्टिकोण से प्रत्येक सामाजिक प्राणी समाज में रहते हुए अहिंसा का पालन कर सकता है तथा इस व्यावहारिक दृष्टिकोण से उसकी सामाजिकता में भी कहीं अन्तर नहीं आता।
आचार्य तुलसी एक सामाजिक प्राणी के लिए मध्यम मार्ग प्रस्तुत करते हुए कहते हैं-"हिंसा जीवन की अनिवार्यता है और अहिंसा पवित्र जीवन की अनिवार्यता। हिंसा जीवन चलाने का साधन है और अहिंसा आदर्श तक पहुंचने या लक्ष्य को पाने का साधन है।""हिंसा जीवन की शैली बन जाए, यह खतरनाक बिंदु है।"
अहिंसक समाज रचना आचार्य तुलसी का चिरपालित स्वप्न है । इस दिशा में अणुव्रत के माध्यम से वे पिछले पचास सालों से अनवरत कार्य कर रहे हैं । २२ अप्रैल १९५० दिल्ली में पत्रकारों के बीच एक वार्ता में आचार्य तुलसी ओजस्वी वाणी में अपनी अन्तर्भावना प्रकट करते हैं- "मैं सामूहिक अशांति को जन्म देने वाली हिंसा को मिटाकर अहिंसा प्रधान समाज का निर्माण करना चाहता हूं। उसकी आधारशिला में निम्न नियम कार्यकारी बन सकते हैं
० जाति, धर्म, सम्प्रदाय, वर्ण आदि का भेद होने के कारण किसी
मानव की हत्या न करना। ० दूसरे समाज या राष्ट्र पर आक्रमण न करना। ० निरपराध व्यक्ति को नहीं मारना, सब प्राणियों के प्रति
आत्मौपम्य भाव का विकास । ० जीवन-यापन के लिए आवश्यक सामग्री के अतिरिक्त अन्य
वस्तुओं का संग्रह न करना । ० मद्यपान और मांसाहार नहीं करना। ० रक्षात्मक युद्ध में भी शत्रुपक्षीय नागरिकों की हत्या न करना। ० बड़प्पन की भावना का अन्त करना, किसी के अधिकार का हनन
न करना। ० व्यभिचार न करना।
१. एक बूंद : एक सागर, पृ० २७८ । २. सफर : आधी शताब्दी का, पृ० ५७ ३. २१ अप्रैल ५०, दिल्ली, पत्रकार वार्ता ।
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