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________________ ७४ नागरिकों को आह्वान करते हुए वे कहते हैं "संयम का मूल्यांकन होता तो बढ़ती हुई आबादी की समस्या जटिल नहीं होती । अपरिग्रह का मूल्य समझा जाता तो गरीबी की समस्या को पांव पसारने का अवसर नहीं मिलता । पुरुषार्थ को महत्त्व मिलता तो बेरोजगारी की समस्या नहीं बढ़ती । अहिंसा की मूल्यवत्ता स्थापित होती तो आतंकवाद की जड़ें गहरी नहीं होतीं । एकता और अखंडता का मूल्यांकन होता तो धर्म, भाषा, जाति आदि के नाम पर देश का विभाजन नहीं होता । मानवीय एकता या समता का सिद्धांत प्रतिष्ठित होता तो जातीय भेदभावों को पनपने का अवसर नहीं मिलता, छुआछूत जैसी मनोवृत्तियों को अपने पंख फैलाने के लिए खुला आकाश नहीं मिलता । ۱۱۹ आ० आचार्य तुलसी को आत्मविश्वास का पर्याय कहा जा सकता है । वे प्रवचन में तो अपनी बात पूरे आत्मविश्वास से कहते ही हैं, लेखन में भी उनका आत्मविश्वास प्रखरता से अभिव्यक्त हुआ है • " में विश्वासपूर्वक कहता हूं कि दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ प्रामाणिकता स्वीकार कर, नैतिकता पर डटकर खड़े हो जाओ तो देखोगे तुम ही सुखी हो।"" • हमारा भविष्य हमारे हाथ में है यह आस्था मजबूत हो जाए तो समस्याओं की सौ-सौ आंधियां भी व्यक्ति के भविष्य को अंधकारमय नहीं बना सकतीं 13 ० मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब तक हिंदुस्तान के पास अहिंसा की सम्पत्ति सुरक्षित है, कोई भी भौतिकवादी शक्ति उसे परास्त नहीं कर सकेगी । O तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण "मुझे उस दिन की प्रतीक्षा है, जब समस्त मानव समाज में भावात्मक एकता स्थापित होगी और बिना किसी जातिभेद के मानव-मानव धर्म के पथ पर आरूढ होंगे ।" १. क्या धर्म बुद्धिगम्य है ? पृ० १०४ २. एक बूंद : एक सागर, पृ० १५९२ ३. वही, पृ० १४८८ नकारात्मक साहित्य समाज में विकृति, संत्रास एवं घुटन पैदा करता है | आचार्य तुलसी ने कहीं भी निराशा एवं निषेध का स्वर मुखर नहीं किया है । उनके सम्पूर्ण साहित्य में इस वैशिष्ट्य को पृष्ठ- पृष्ठ में देखा जा सकता है, जहां उन्होंने अंधकार में भी प्रकाश की ज्योति जलाई है, निराशा में भी आशा के गीत गाए हैं तथा दुःख में से सुख को प्राप्त करने की कला बताई है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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