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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
"संसद जनता के द्वार पर दस्तक देकर पुकार रही है-प्रजाजनों । आपने अच्छे-अच्छे लोगों का चयन कर मेरे पास भेजा। पर न जाने क्यों ये सब मेरी इज्जत लेने पर उतारू हो रहे हैं । इस समय मैं घोर संकट में हूं। मुझे बचाओ । मेरी रक्षा करो।"......... तीन प्रकार के व्यक्तियों को मुझसे दूर रखो । एक वे व्यक्ति जो केवल विरोध के लिए विरोध करते हैं। दूसरे वे जो गलत तरीकों से वोट पाकर सत्ता के गलियारे तक पहुंचते हैं और तीसरे वे व्यक्ति, जो असंयमी हैं। ऐसे लोग न तो अपनी वाणी पर संयम रख सकते हैं और न अपने व्यवहार में सन्तुलन रख पाते हैं। इन लोगों का असंयत आचरण देखकर मेरा सिर शर्म से नीचा हो जाता है । इसलिए आप दया करो और ऐसे लोगों को मुझ तक पहुंचने से रोको।१।
आचार्य तुलसी की शैली का यह वैशिष्ट्य है कि वे किसी भी विषय का स्पष्टीकरण प्रायः स्वयं ही गम्भीर प्रश्न उठाकर करते हैं। श्रोता या पाठक को ऐसा लगता है मानो वे भी उसमें भाग ले रहे हों। तत्पश्चात् समाधान की मोर विषय को मोड़ते हैं, इससे विषय प्रतिपादन के साथ पाठक का तादात्म्य हो जाता है। तर्कपूर्ण एवं वैज्ञानिक शैली में की गयी उनकी इक्कीसवीं सदी की चर्चा कितनी हृदयस्पर्शी बन गयी है
"कैसा होगा इक्कीसवीं सदी का जीवन ? यह एक प्रश्न है। इसके गर्भ में कुछ नई सम्भावनाएं अंगड़ाई ले रही हैं तो कुछ आशंकाएं भी सिर उठा रही हैं। एक ओर सुविधाभोगी संस्कृति को पांव जमाने के लिए नई जमीन उपलब्ध करवाई जा रही है तो दूसरी ओर पुरुषार्थ जीवी संस्कृति को दफनाने के लिए नई कब्रगाह की व्यवस्था सोची जा रही है। कुछ नया करने और पाने की मीठी गुदगुदी के साथ कुछ न करने का दंश भी इसी सदी को भोगना होगा। इसमें इतनी बारीकी से सत्य अभिव्यक्त हुआ है कि विषय वस्तु का आरपार संक्षेप में एक साथ प्रकाशित हो उठा है।
कहीं-कहीं उनके प्रश्न समाज की विसंगति पर तीखा व्यंग्य भी करते हैं । ये व्यंग्यात्मक प्रश्न किसी भी व्यक्ति के हृदय को तरंगित एवं झंकृत करने में समर्थ हैं। सतीप्रथा पर व्यंग्य करती उनकी निम्न उक्ति विचारणीय है
"दाम्पत्य सम्बन्ध तो द्विष्ठ है। स्त्री के लिए पतिव्रता होना और पति के साथ जलना गौरव की बात है तो पुरुष के लिए पत्नीव्रत का आदर्श कहां चला जाता है ? उसके मन में पत्नी के साथ जलने की भावना क्यों नहीं जागती ? पति की मृत्यु के बाद स्त्री विधवा होती है तो क्या पत्नी की मृत्यु के बाद पुरुष विधुर महीं होता ? स्त्री के लिए पति परमेश्वर है तो पुरुष
१. कुहासे में उगता सूरज, पृ० ७६-७७ २. एक बूंद : एक सागर, पृ० १७३६
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