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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
० अनुशासन का अस्वीकार जीवन की पहली हार है। ० हम सहन करें, हमारा जीवन एक लयात्मक संगीत बन जाएगा। ० स्वतंत्रता का अर्थ होता है-अपने अनुशासन द्वारा संचालित - जीवन यात्रा। • अविश्वास की चिनगारी सुलगते ही सत्ता से गरिमा के साथ हट
जाना लोकतंत्र का आदर्श है। ० वह हर प्राणी शस्त्र है, जो दूसरे के अस्तित्व पर प्रहार करता
० साम्प्रदायिक उन्माद इंसान को भी शैतान बना देता है । ० जो व्यक्ति कांटों की चुभन से घबराकर पीछे हट जाता है, वह
फूलों की सौरभ नहीं पा सकता।
भाषा में प्रवाह लाने के लिए या कथ्य पर जोर देने के लिए वे कभीकभी शब्दों की पुनरावृत्ति भी कर देते हैं । युवापीढ़ी को रूपक के माध्यम से प्रेरणा देते हुए वे कहते हैं---
"तुम्हारा हर चिन्तन, तुम्हारी हर प्रवृत्ति, तुम्हारी हर प्रतिभा, तुम्हारी योग्यता, तुम्हारी शक्ति, सामर्थ्य और तुम्हारी हर सांस इस भुवन को सींचने के लिए, सुरक्षा के लिए सम्पूर्ण रूप से सुरक्षित रहे।
० 'युद्ध बरबादी है, अशांति है, अस्थिरता है और जानमाल की भारी तबाही है । इस वाक्य को यदि यों कहा जाता कि युद्ध बरबादी, अशांति, अस्थिरता और जानमाल की तबाही है तो वाक्य प्रभावक नहीं बनता।'
उन्होंने लगभग छोटे-छोटे बोधगम्य वाक्यों का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं काफी लम्बे वाक्य भी प्रयुक्त हैं पर शृंखलाबद्धता के कारण उनमें कहीं भी शैथिल्य नहीं आया है। उनके साहित्य में भाषा की द्विरूपता के दा कारण हैं
१. अनेक सम्पादकों का होना । २. लेखन और वक्तव्य की भाषा में बहुत बड़ा अन्तर होता है
आचार्यश्री इन दोनों भूमिकाओं से गुजरे हैं इसलिए कहीं-वहीं इनमें सम्मिश्रण भी हो गया है।।
छायावादी एवं रहस्यवादी शैली प्रायः काव्य में चमत्कार उत्पन्न करने हेतु अपनायी जाती है । पर आचार्य तुलसी ने गद्य साहित्य में भी इस शैली का प्रयोग किया है । संसद को मानवाकार रूप में प्रस्तुत कर उसकी पीड़ा को उसी के मुख से कहलवाने में वे कितने सिद्धहस्त बन पड़े हैं
१. अतीत का विसर्जन : अनागत का स्वागत, पृ० ५२-५३ २. अणुव्रत : गति प्रगति, पृ० १५१
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