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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
में नहीं जाना चाहिए।
० गांधीजी ने कहा था-'वह दुर्भाग्य का दिन होगा, जिस दिन राष्ट्र में संत नहीं होंगे।'
० नेपोलियन कहा करता था-'मैं जिस मार्ग से आगे बढ़ना चाहता हूं, वहां बीच में पहाड़ आ जाएं तो एक बार हटकर मुझे रास्ता दे देते हैं।'
वे भाषा को गतिशील धारा के रूप में स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने साहित्य में अन्य भाषा के शब्दों का भी यथोचित समावेश किया है। हिन्दी में प्रचलित अरबी, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी, गुजराती, बंगाली आदि भाषाओं के अनेक शब्दों को उन्होंने अपनी भाषा का अंग बना लिया है जैसे
____ मजहब, बरकरार, बेगुनाह, फुरसत, चंगा, जमाना, बुनियाद, तूफान, गुंजाइश, बियावान, टेंशन, टाईम, यंग, करेक्टर, मेन, गुड, प्रोग्रेस, रिजर्व एकला आदि।
राजस्थानी मातृभाषा होने के कारण हिंदी साहित्य में भी अनेक विशुद्ध राजस्थानी शब्दों का प्रयोग उनके साहित्य में मिलता है--ठिकाना' (स्थान) सीयालो (शीतकाल) जाणवाजोग (जाननेयोग्य) टाबर आदि ।
__ कहीं-कहीं प्रसंग वश अंग्रेजी के वाक्यों का प्रयोग भी उनके साहित्य में हुआ है
__ "लोग स्टेण्डर्ड ऑफ लिविंग को गौण मानकर स्टेण्डर्ड ऑफ लाइफ को ऊंचा उठाए।"
संस्कृत कोश एवं व्याकरण के प्रकाण्ड पण्डित होने के कारण हिन्दी में संधियुक्त एवं समस्त पदों का प्रयोग भी बहुलता से उनके साहित्य में मिलता है-हर्षोत्फुल्ल, समाकलन, अभिव्याप्त, चिताप्रधान, फलश्रुति तीर्थेश आभिजात्य, दुरभिसंधि आदि ।
कहा जा सकता है कि उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशी एवं विदेशी इन चारों शब्दों का प्रयोग यथायोग्य हुआ है।
उन्होंने अपनी भाषा में युग्म शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है । इससे भाषा में बोलचाल की पुट आ गई है
मार-काट, अक-बक, लूट-खसोट, नौकर-चाकर, ठाट-बाठ, कर्ताधर्ता, साज-बाज, टेढ़ा-मेढ़ा, उथल-पुथल, आदि ।
__ शब्दों के चाल अर्थ के अतिरिक्त उनमें नया अर्थ खोज लेना उनकी प्रतिभा का अपना वैशिष्ट्य है। भाषागत इस वैशिष्ट्य के हमें अनेक उदाहरण मिल सकते हैं। उदाहरण के लिए यहां एक प्रसंग प्रस्तुत किया जा
१. अणुव्रत : गति प्रगति, पृ० १५१ ।
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