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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण ० 'बीच में भौतिकता का विशालकाय समुद्र पड़ा है अब आपको बुराई रूपी रावण की हत्या कर अशांति युक्त शत्रु सेना को मारकर शांति सीता को लाना है।'
___ लोकोक्तियों को सामाजिक जीवन का नीतिशास्त्र कहा जा सकता है क्योंकि वे लोकजीवन के समीप होती हैं। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से उनकी भाषा व्यंजक एवं सजीव बन गई है। अनेक अप्रचलित लोकोक्तियों को भी उन्होंने अपने साहित्य में स्थान दिया है। राजस्थानी लोकोक्तियों का तो उन्होंने खुलकर प्रयोग किया है, जिससे उनके साहित्य में अर्थगत चमत्कार का समावेश हो गया है
१. जहां चाह, वहां राह १ जाओ लाख, रहो साख २. पेंडो भलो न कोस को, बेटी भली न एक ३. तीजे लोक पतीजे।
साहित्यिक मुहावरे नहीं अपितु जन-जीवन एवं ग्राम्य जीवन के बोलचाल में आने वाले मुहावरों का प्रयोग उनकी भाषा में अधिक मिलता हैं। क्योंकि उनका लक्ष्य भाषा को अलंकृत करना नहीं अपितु सही तथ्य को जनता के गले उतारना है । भारतीय ही नहीं विदेशी कहावतों का प्रयोग भी उनके साहित्य में यत्र-तत्र हुआ है।
'अरबी कहावत है कि गधा दूसरी बार उसी गड्ढे में नहीं गिरता-- गधे की यह समझ मनुष्य में आ जाए तो अनेक हादसों को टाला जा सकता
लोकोक्तियों के अतिरिक्त शास्त्रीय उद्धरण एवं महापुरुषों के सूक्तिवाक्यों के प्रयोग उनकी बहुश्रुतता का दिग्दर्शन कराते हैं
१. मरणसम नत्थि भयं । २. नो हरिसे, नो कुज्झे। ३. इयाणि णो जमहं पुवमकासी पमाएणं । ४. न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।
कबीर, राजिया, रहीम, आचार्य भिक्षु आदि के सैकड़ों दोहे तो उनको अपने नाम की भांति मुखस्थ हैं अतः समय-समय पर उनके माध्यम से भी वे जन-चेतना को उद्बोधित करते रहते हैं, जिससे उनकी भाषा में चित्रात्मकता, सरसता एवं सरलता आ गई है।
प्राच्य के साथ साथ पाश्चात्त्य विद्वानों के विचार एवं घटना-प्रसंग भी प्रचुर मात्रा में उनके साहित्य में देखे जा सकते हैं---
० लेनिन का अभिमत रहा है कि प्रथम श्रेणी के व्यक्तियों को चुनाव १. बैसाखियां विश्वास की, पृ० ६७
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