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संयम या व्रत का अर्थ है अपने आपको एक बिन्दु पर केन्द्रित करना। सूर्य की खुली रश्मियों से कुछ नहीं होता। उनको शीशे में केन्द्रित करने से दाहक शक्ति पैदा हो जाती है। केन्द्रित रश्मि कागज पर फेंकिए, वह जल जाएगा। खुली हवा में कुछ नहीं होता। हवा को दृति में भर लेने से वह नदी को पार करा देती है। हम अपनी इन्द्रियों और मन को केन्द्रित नहीं कर पाते, इसीलिए शक्ति व्यर्थ चली जाती है। केन्द्रित करने से शक्ति का विकास होता है। व्यापार में भी वे ही सफल होते हैं, जिन्होंने मन को केन्द्रित कर काम किया है। जिनमें दृढ़ संकल्प नहीं रहा, वे कभी सफल नहीं हुए। ध्यान भारतीय दर्शन की देन है। इसके द्वारा आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में सफलता पा सकते हैं। हिटलर दृढ़-संकल्पी था, यद्यपि उसका क्षेत्र हिंसा का था। भगवान महावीर ने स्थानांग सूत्र में तीन प्रकार के शूर बतलाए हैं-दानशूर, कर्मशूर और धर्मशूर। वह कर्मशूर था। उसमें इतनी शक्ति कहां से आई? नेपोलियन जितना बड़ा विजेता था, उतना ही दृढ़-संकल्पी और मन को स्थिर रखने वाला था।
राजनीति में महात्मा गांधी आए। उन्होंने कितना बड़ा काम किया। वे जीवन में व्रत का महत्त्व समझते थे। उन्होंने अपने लिए ग्यारह व्रत बनाए थे। वे व्रत दूसरों के लिए भी थे।
हर व्यक्ति, जो सफल हुए हैं, उन्होंने व्रतों का आचरण किया है। व्रत हमारी जीवन की निष्ठा को और वृत्तियों को केन्द्रित करता है।
देखने में असंयम का पक्ष आकर्षण का लगता है। जहां जीवन में संतुलन नहीं, वहां सामाजिक जीवन भी अच्छा नहीं
व्रतों की उपयोगिता म ८७ . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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