________________
सब लाभ के लिए करते हैं। लाभ की भावना हर आदमी के मन में रहती है।
कोई संयम स्वीकार क्यों करता है? इसलिए कि कुछ आकांक्षाओं और प्रवृत्तियों को त्यागना है, जो आज तक करता आ रहा है उसे रोकना है। कुछ लोगों की धारणा है कि खूब खाओ, पीओ और मौज करो। जी भर घी पीओ, पास में न हो तो ऋण करके घी पीओ। आना-जाना कुछ भी नहीं है। सुख से जीओ और सुख-सुविधा के साधन जुटाओ। साधन जुटाने में साधन-शुद्धि की आवश्यकता नहीं है।
एक ओर यह असंयम की धारा प्रबलता से बह रही है। दूसरी ओर कहा जाता है, आशाओं को कम करो, इच्छाओं को कम करो, विलास कम करो, भोग कम करो, जीवन को कसो, उसे खुला मत छोड़ो।
दोनों धाराएं एक-दूसरे के विपरीत हैं। व्यक्ति का सहज आकर्षण असंयम और अव्रत की ओर है, सुख-सुविधा की ओर है। ऐसी स्थिति में धर्म का पलड़ा भारी रहना कठिन है। धर्म में मिलता क्या है! उपवास करो, खाने की सुविधा छोड़ो। ऐसी स्थिति में व्रत के प्रति आकर्षण कैसे होगा?
जिसने बहुत खाया है, वह बीमार पड़ा है। जिसने अधिक भोग किया है, वह मानसिक पीड़ा से व्यथित हुआ है, अशान्त हुआ है। यदि दुनिया में भोग नहीं होता तो मनुष्य त्याग की
ओर नहीं झुकता। यदि अधर्म नहीं होता तो धर्म की प्रेरणा नहीं जागती। अव्रत के प्रति आकर्षण ने ही व्रत की ओर प्रेरित किया है। ___ बैठे रहने में आराम मिलता है। अधिक बैठने से पेट खराब
व्रतों की उपयोगिता म ५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
Jain Education International