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व्रतों की उपयोगिता
'विरागः सर्वदोषेभ्योऽनुरागस्तव पादयोः । निपातः सर्वपापानां, प्रणिपातस्तयोर्महान् ॥'
भगवान! मैं चाहता हूं, सब दोषों से मेरे मन में विराग आए। आपके चरणों में अनुराग जुड़े। वैराग्य का अर्थ है-किसी से अनुराग करना। भगवान के चरणों में अनुराग होता है, इसका अर्थ होगा दूसरों से विराग। विराग के लिए कहीं अनुराग होना चाहिए। विषयों से अनुराग होगा तो भगवान से विराग होगा। भगवान से अनुराग होगा तो विषयों से विराग होगा। पहले सोचें, अनुराग कहां करना है। अनुराग नहीं जमा तो विराग नहीं आएगा। भगवान के चरणों में अनुराग होने से दूसरों से विराग स्वतः हो जाएगा। जीवन की हर प्रवृत्ति में यह बात घटित होती है।
व्रतों के प्रति अनुराग होगा तो अव्रत के प्रति विराग हो जाएगा। एक के प्रति अनुराग होना चाहिए। आकर्षण हुए बिना किसी भी चीज का विकास हो नहीं सकता। आकर्षण तब होगा जब उसे दिखलाई दे कि इससे लाभ होगा। बुद्धिमान् हो चाहे कम बुद्धि वाला हो, लाभ की आशा के बिना पैर नहीं बढ़ता।
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