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आग्रही व्यक्ति अपनी बनी हुई धारणा को पुष्ट करने के लिए तर्क का उपयोग करता है । जो चित्र दिमाग में बसा हुआ है, उसे ही समर्थन देता है ।
एक व्यक्ति घर में आया और रोने लगा । सिर पर पल्ला ले लिया। घर वालों ने पूछा - 'आज क्या हो गया है ? कौन-सी दुर्घटना हुई है?' वह बोला- 'क्या तुम लोगों को पता नहीं है ? मेरी पत्नी विधवा हो गई है।' घर वाले बोले - 'तुम खड़े हो फिर वह कैसे विधवा हो गई ?'
उसने कहा- 'ससुराल से नाई आया है, वह कह रहा है, तुम्हारी पत्नी विधवा हो गई। क्या ससुराल का नाई झूठ बोलता है ? झूठ बोलने में उसको क्या लाभ?"
हमारे जीवन की बहुत सारी स्थिति दूसरों के कहने के आधार पर चलती है। तुम सोचो, तुम्हारा विवेक क्या कहता है ? तुम्हारा ज्ञान क्या कहता है? दूसरों के कहने से चलने का अर्थ हुआ, तुमने अपना अनुभव और विवेक बेच दिया है। दूसरों पर इतना निर्भर कभी नहीं रहना चाहिए ।
सूत्रों में लिखा है, साधु को कान का मैल, नाक का मैल, आंख का मैल नहीं निकालना चाहिए । जुलाब नहीं लेना चाहिए, मर्दन नहीं करना चाहिए, दांत भी साफ नहीं करना चाहिए । दूसरी ओर साधुओं की क्रियाएं देखते हैं कि वे कान साफ करते हैं, दांत साफ करते हैं । आप क्या सोचेंगे? सूत्रों में कुछ कहा है और कर कुछ रहे हैं। आपकी आस्था डोल जाएगी। परन्तु जानना चाहिए कि कोई भी नियम अपेक्षा - शून्य नहीं होता । हर नियम देश, काल और भाव-सापेक्ष होता है। अपेक्षा को नहीं समझने के कारण संशय होता है। हम लोग स्यादवादी हैं ।
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आस्तिक्य७३
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