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यह नई बात नहीं है। हर नई वस्तु को चार स्टेज पार करने पड़ते हैं
१. मखौल।
२. आलोचना-इससे क्या होगा? यह काम की चीज नहीं है। बारह व्रतों से ही काम हो सकता था, फिर अणुव्रतों की आवश्यकता ही क्या थी?
३. समझना-आलोचना के बाद उपयोगिता समझ में आती है। अणुव्रतों से अनेक लोग धर्म के निकट आए हैं।
४. स्वीकार-फिर अच्छा जान उसे स्वीकार करते हैं। __हर नई वस्तु को ये चार स्टेज पार करने होते हैं।
मैं समझता हूं, ऐसा होना ही चाहिए। ज्ञान के द्वारा परीक्षा कर फिर नई वस्तु को ग्रहण करना चाहिए। रूढ़िवादिता से ग्रहण नहीं करना चाहिए। आचार्य भिक्षु ने कहा है- 'बाप तलाई जाण नै, खावै गार गिंवार।' ____ तालाब का पानी सूख गया था। एक व्यक्ति उसकी मिट्टी को चाट रहा था। दूसरे ने देखा तो कहा- पानी की आवश्यकता है तो पास में ही दूसरा तालाब है, वहां चले जाओ।' उसने उत्तर दिया- 'यह मेरे बाप का है, इसलिए पानी तो यहीं पीऊंगा।'
ऐसा परीक्षक नहीं चाहिए, ऐसा श्रद्धालु नहीं चाहिए। सत्य को पकड़ने के लिए दिमाग को एकदम खाली करना होगा। दिमाग बच्चों की स्लेट की तरह साफ चाहिए। नई बात को लाने के लिए, उसके लिए स्थान खाली करो, तभी उसका प्रवेश होगा।
'आग्रही बत निनीषति युक्ति, तत्र यत्र मतिरस्य निविष्टा।
पक्षपातरहितस्य तु युक्तिर्यत्र तत्र मतिरेति निवेशम् ॥' ७२ में धर्म के सूत्र
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