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आस्तिक्य
'अदृश्यो यदि दृश्यो न, भक्तेनापि मया प्रभो!
स्याद्वादस्ते कथं तर्हि, भावी मे हृदयंगमः ॥' भगवान महावीर की स्तुति में मैंने लिखा था--आप अदृश्य हैं, ऐसा सब लोग कहते हैं। पर मैं आपका भक्त हूं। यदि आप मुझे भी दिखाई नहीं देते तो स्याद्वाद मेरी समझ में नहीं आएगा। अदृश्य भी दृश्य होता है। तब स्याद्वाद बनता है। भले ही आप दूसरों के लिए अदृश्य बनें, पर मेरे लिए दृश्य बनें, तभी मैं स्यादवाद् को समझ पाऊंगा, तभी आपका स्याद्वाद मेरे हृदयंगम होगा।
'जावंति विज्जा पुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा। लुप्पंति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणंतगे ॥१॥ समिक्ख पंडिए तम्हा, पास जाइपहे बहु।
अप्पणा सच्च मेसिज्जा, मित्तिं भूएसु कप्पए ॥२॥ इस दुनिया में जितना दुःख है, वह अज्ञानी आदमी ही उत्पन्न करता है। ज्ञानी दुःख उत्पन्न नहीं करता। अज्ञानी अपने लिए भी दुःख उत्पन्न करता है। सब दुःख का मूल अज्ञान है। यदि दुःखों को पैदा करने वाला अज्ञानी नहीं होता तो दुःख
६८ म धर्म के सूत्र
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