________________
है। जादू का-सा खेल है। याद रखें, वह संकल्प की अहिंसा है, सिद्ध-अहिंसा नहीं। संकल्प का सत्य है, सिद्ध-सत्य नहीं। संकल्प का अचौर्य है, सिद्ध-अचौर्य नहीं। संकल्प का ब्रह्मचर्य है, सिद्ध-ब्रह्मचर्य नहीं। संकल्प का अपरिग्रह है, सिद्ध-अपरिग्रह नहीं। संकल्प और सिद्ध में दूरी होती है। साधु बनने वाले ने उसको स्वीकार किया है, परन्तु लक्ष्य तक पहुंचा नहीं है। सिद्ध-अहिंसा वीतराग की अहिंसा होती है और संकल्प-अहिंसा प्रारम्भिक कक्षा की अहिंसा होती है।
वीतराग कभी झूठ नहीं बोलता, साधक बोल भी लेता है। वीतराग कभी हिंसा नहीं करता, साधक कर भी लेता है। अवीतराग का चरित्र स्वीकार किया जाता है और वीतराग तक पहुंचा जाता है। अवीतराग से गलती हो भी जाती है और कर भी लेता है। लक्ष्य साधना की ओर है, तब ठीक है। दिशा बदल जाए तो रास्ता गलत हो जाता है। दिशा अभिमुख होनी चाहिए, गति में तीव्रता-मन्दता आती रहती है। ____एक साधक दूज के चन्द्रमा के समान होता है और एक पूर्णिमा के चन्द्र के समान। दोनों का अन्तर स्पष्ट होने से उलझन नहीं बढ़ती। दूसरों के आधार पर आस्था छोड़ने की बात उचित नहीं है। हम दूसरों को धर्म कराना चाहते हैं। एक गांव में सतियों का चातुर्मास था। उपवास की बारी के लिए एक भाई को याद दिलाया कि कल तुम्हारी बारी है। उसने उत्तर दिया-'ठीक है, उपवास हो जाएगा।' उपवास के बाद पूछा-'क्यों, उपवास करा लिया?' 'हां, करा लिया। 'किससे?' 'घर में भैंस है, उससे करा लिया।
मनोवृत्ति ऐसी बन गयी कि स्वयं न करके दूसरों से करवाना
सम्यक्दृष्टि (३) म ५६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
Jain Education International