________________
काम कर लिया, इनको देख धर्म से मेरी आस्था उतर गयी।' मैंने उत्तर दिया-'यह तुम्हारी दुर्बलता है। गलती करे कोई और आस्था टूटे तुम्हारी! कितनी कमजोर आस्था है तुम्हारी! एक व्यक्ति को वमन करते देख वही व्यक्ति वमन करता है जिसकी पाचन शक्ति कमजोर हो। क्या तुमने धर्म उनके आधार पर स्वीकार किया है? वे धर्म में रहें तो तुम्हारी आस्था टिकी रहे। इसका अर्थ हुआ, तुम्हारा भाग्य उनके हाथों में है। जब वे चाहें जैसी चाबी घुमा दें, तुम्हें वैसे ही बनना होगा।' धर्म को आत्मा से समझकर स्वीकार किया है। हमने ऐसा क्यों मान लिया कि वे साधु नहीं, सिद्ध हैं। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि साधु साधना की भूमिका में चलता है, सिद्ध नहीं है। वह साधना के मार्ग पर चलता है, लड़खड़ा भी जाता है और पीछे भी रह जाता है, परन्तु उसका रास्ता ठीक है।
विवेकानन्द ने लिखा है कि जब मैं ध्यान की साधना कर रहा था, उस समय वासना उभरने लगी। ध्यान की साधना में ज्यों-ज्यों साधक आगे बढ़ता है, पुराने संस्कारों की जड़ उखड़ने लगती है, भयंकर वासना जाग जाती है। उस समय अपने को संभालकर रखना बहुत कठिन होता है। यदि गुरु संभालने वाला न हो तो कठिनाई हो जाती है।
गांव के बाहर अकूरड़ी होती है। वर्षों से उस पर आते-जाते हैं, लेकिन दुर्गन्ध नहीं आती। यदि उसको साफ करेंगे तो बदबू फूटने लगेगी। जमने के बाद दुर्गन्ध भी जम जाती है। पेट में भी विजातीय तत्त्व जमा पड़ा है। क्या कोई कह सकता है, मेरा पेट साफ है, विजातीत तत्त्व नहीं है? अज्ञान के कारण कोई कह सकता है। समझदार कभी नहीं कह सकता। हमने
सम्यक्दृष्टि (३) म ५७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org