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________________ वर्ष में एक बार। यह संभव न हो तो महीने में एक बार। यह भी संभव न हो तो दिन में एक बार। यह भी संभव न हो तो सिर पर कफन रख लो, फिर चाहे कितनी बार करो।' स्नायुओं की दुर्बलता, मन की दुर्बलता और चिन्तन-शक्ति की दुर्बलता होती है वीर्य की कमी के कारण। इस बात को जानते हुए भी कितने लोग अपनी शक्ति की सुरक्षा कर पाते हैं? जानने और करने की खाई को पाटने वाला भगवान हो जाता है। कहना सरल है, पर करना कठिन है। कहने की शक्ति वाणी है और समझने का साधन वाणी है, यह तो सरलता से हो जाता है। परन्तु उसे करने में कठिनाई होती है। मैं देखता हूं-दहेज का प्रश्न समाज में बड़ा प्रश्न है। हजारों व्यक्ति कहते हैं और अनुभव भी करते हैं। जब करने का समय आता है तब कहते हैं-एक काम सामने है। इसको निपटा लें फिर सोचेंगे। जहां अपने का प्रश्न आता है, वहां गड़बड़ी हो जाती है। संस्कृत में दो पद होते हैं-परस्मैपद और आत्मनेपद। जहां आत्मनेपद आता है, वह अपने लिए होता है, उसमें रूप परिवर्तन हो जाता है। दूसरों को कहने में सुविधा है। जहां अपने लिए प्रश्न आता है, वहां कठिनाई हो जाती है। कहने वालों को आत्मालोचन करना चाहिए। स्थानांग सूत्र में छद्मस्थ के सात लक्षण और वीतराग के भी सात लक्षण बताए हैं। सात लक्षणों से छद्मस्त माना जाता है। उनमें एक लक्षण है-वह कहता कुछ और है और करता कुछ है। उपदेश देने वाले भी इस भूमिका को पार कर गए-ऐसी बात नहीं है। एक भाई ने मुझसे कहा-'अमुक साधु ने क्रोध किया, अमुक साधु ने कठोर वचन कह दिए। अमुक साधु ने अमुक ५६ में धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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