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लिए। साध्वियां भी मिल गयीं। इसलिए उन्होंने और विकास किया। गुरुदेव को उनसे भी अधिक साधन-सामग्री मिल गयी। उन्होंने और अधिक विकास किया है। अभी एक गोष्ठी में मैंने कहा-पहले हमारे सामने कठिनाई थी। एक साधु की प्रति दूसरे को पढ़ने के लिए नहीं मिलती थी। वह एक व्यक्तिगत सम्पत्ति थी। आज परिवर्तन हो गया है। साधनों की सुलभता है। जयाचार्य का युग कठिनाई का था। जयाचार्य के सामने आज जैसी सामग्री सुलभ होती तो वे इतना कार्य कर जाते कि एक प्रकार से विस्फोट-सा हो जाता। फिर भी जयाचार्य ने बहुत किया। यदि वे नहीं करते तो समाज और रूढ़िगत हो जाता और कूपमेंढक की गति हम लोगों की हो जाती।
जयाचार्य हमारा मार्ग प्रशस्त कर गए। हमें वर्तमान की अपेक्षाओं को वर्तमान के सन्दर्भ में ही समझना है और उसे पूरा करना है।
सम्यकदृष्टि (१) ४७
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