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धर्म की व्याख्या
हम संपर्कों की दुनिया में जी रहे हैं। संपर्क बहुविध होते हैं। सबसे बड़ा सम्पर्क होता है विचारों का। आचार्यश्री ने वैचारिक क्रान्ति की है। उनके युगप्रधान होने के लिए एक ही बात पर्याप्त है। उन्होंने धर्म के मूल्यों का वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में नया रूप स्थापित किया है जिससे अनास्थावान् भी आस्थावान् हुए हैं। जो बौद्धिक धर्म से दूर हट रहे थे, आज वे निष्ठावान् बन गए। मुम्बई में एक मंत्री महोदय आचार्यश्री के पास आए और कहने लगे-'धर्म करने की बहुत भावना रहती है, पर समय नहीं मिलता।' आचार्यश्री ने उत्तर दिया-'मैं आपको ऐसा धर्म बता सकता हूं, जिसके लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता ही न हो।' मंत्री महोदय बोले-'यदि ऐसा धर्म बता दें तो बहुत अच्छा होगा।' आचार्यश्री ने सुझाया-'आप जो कार्य करते हैं, उसमें प्रामाणिकता और नैतिकता रखिए।'
मंत्री महोदय ने फिर प्रश्न किया-क्या इससे परलोक सुधर जाएगा?
आचार्यश्री ने उत्तर दिया-'हां, सुधर जाएगा।'
अहमदाबाद में एक बहिन आचार्यश्री के पास आई और बोली- 'मैं किसी को गाली नहीं देती, बच्चों को नहीं मारती,
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