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सबके साथ सद्व्यवहार करती हूं, पर धर्म के लिए समय नहीं नेकाल सकती ।'
आचार्यश्री ने उत्तर दिया- 'तुम्हारा व्यवहार अच्छा है, यही तो धर्म है ।'
दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं, जो धार्मिक कहलाते हैं, पर उनका ऐसा व्यवहार सामने आता है जिससे उनको धार्मिक कहने में संकोच होता है। उन्होंने ईमानदारी और सचाई के मूल्यों को दूर रखकर कुछेक क्रियाकांडों को धर्म मान रखा है । गुरुदेव ने धर्म की नई व्याख्या दी जो बड़े-से-बड़े नास्तिक को भी आस्थावान् बना देती है
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दिल्ली के बुद्धिवादियों ने कहा- गुरुदेव ! आपने धर्म की नई व्याख्या देकर हम बुद्धिवादियों की डिगती आस्था को स्थिर बना दिया है । प्राचीन को या शाश्वत को दूसरों के लिए ग्राह्य बनाने के लिए नया परिवेश देना होता है । आपने शाश्वत और परिवर्तन के बीच सामंजस्य स्थापित किया है। ऐसा काम विरले व्यक्ति ही कर सकते हैं, साधारण व्यक्ति नहीं ।
देहली में दरियागंज में प्रोग्राम था । उसमें नवभारत टाइम्स के सम्पादक अक्षयकुमारजी जैन भी थे। पहले मैं बोला, फिर आचार्यश्री ने प्रवचन किया । फिर अक्षयकुमारजी खड़े हुए और बोले- आज तक मैं अपने को धार्मिक और आस्तिक कहने में संकोच का अनुभव करता था | आज आपने जो धर्म की व्याख्या दी है, उसके आधार पर मैं अपने को धार्मिक कहने का साहस कर सकता हूं।
लखनऊ में कामरेड यशपाल के पास कार्यकर्ता गए तो वे चौंके और कहा - 'कहीं यशपाल जैन समझकर तो नहीं आए
२८ धर्म के सूत्र
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