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हो तो हम विरोध की भाषा में नहीं सोच सकते। जिस आंख से राजपथ देखते हैं, उससे गड्ढा भी देखते हैं। दो वस्तुओं को देखने के लिए अलग आंखों की आवश्यकता नहीं होती। मकान पर चढ़ने और उतरने के लिए दो सीढ़ियां नहीं होती। हंसने और रोने के लिए दो आंखें नहीं होती। विरोधी दीखने वाली वस्तु विरोधी नहीं होती, यदि दृष्टि साफ हो। धार्मिक जीवन का पहला आधार सम्यक् दर्शन है। दृष्टिकोण साफ हुए बिना अगली मंजिल नहीं मिलती। इसलिए धर्म की साधना में दृष्टि की प्रसन्नता व निर्मलता पहली आवश्यकता है।
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धर्म के सूत्र
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