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________________ सारा समाज करता है । सब लोग छोड़ते हैं तो मैं भी छोड़ दूंगा । सबके साथ रहूंगा। अकेले छोड़ने से क्या होगा ? जहां समाज का प्रश्न आता है कि समाज में अनेक लोगों को खाने के लिए नहीं मिलता, तुम मौज उड़ाते हो और फिजूलखर्ची करते हो। तुम्हें समाज के सहयोग के लिए कुछ करना चाहिए । तब उत्तर मिलता है-सब आदमी अपने-अपने कर्मों का फल भोगते हैं । जिसने जैसा किया है, वैसा ही पाएगा। यह दृष्टि का दोष है । सारी बातों को स्वार्थवश पकड़ लेते हैं । धार्मिक देश जितना अच्छा हो सकता है, उतना दूसरा देश नहीं। धर्म की गलत मान्यताओं को लेकर चलने वाला देश विकास की दृष्टि से गिर जाता है। भारत में धर्म की आत्मा लुप्त है और गलत मान्यताएं चल रही हैं। उसमें संशोधन करने की अपेक्षा है । चार पुरुषार्थ हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । सामाजिक व्यक्ति अर्थ और काम के बिना नहीं रह सकता। समाज का मूल है कामना । काम की पूर्ति अर्थ से होती है । केवल इनसे समाज नहीं चल सकता । धर्म की भावना की भी आवश्यकता होती है। धर्म का साध्य मोक्ष है । इस पुरुषार्थ चतुष्टयी में दो हैं साध्य और दो हैं साधन । मोक्ष साध्य है और उसका साधन है धर्म । काम साध्य है और उसका साधन है अर्थ | दो वर्ग हो गएमोक्ष के लिए धर्म । काम के लिए अर्थ | दोनों वर्गों को विरोधी मानना भूल है। हमारी दृष्टि साफ Jain Education International For Private & Personal Use Only धर्म कैसे ? २५ www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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