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प्रदेश की यात्रा पर जा रहे थे। कई स्थानों पर लोग बैठे हास्य
और बातें कर रहे थे। थोड़ी देर बाद जापानी मित्र ने कहा- 'जे. पी.! तुम्हारा भारत तो बड़ा समृद्ध लगता है।' जयप्रकाश ने कहा-'इतना व्यंग्य क्यों करते हो? यहां तो टूटी-फूटी झोंपड़ियां हैं, फटे कपड़े और नंगे बदन वाले आदमी हैं। देखने से ही गरीब लगते हैं।
जापानी मित्र ने कहा- 'देखो! ये कितने लोग खाली हाथ बैठे हैं। जापान में कोई भी निकम्मा नहीं मिलेगा। निकम्मापन समृद्ध देश में ही हो सकता है। एक ओर गरीबी है, खाने को नहीं है, फिर भी खाली बैठे बातें करते हैं। जापान में जनरल स्टोर में चले जाइए। जो वस्तु पसन्द आए, उसको बता दीजिए। वह बिल आपको दे देगा। वह चेक नहीं करेगा कि आपने कितनी वस्तु ली है और कितनी बता रहे हैं। भारत में यदि ऐसे न पूछे तो चार दिन में स्टोर खाली हो जाए।
ऐसी आदत क्यों बिगड़ती है? आदत बिगड़ती है गरीबी के कारण। स्वार्थी दृष्टिकोण
जो कार्य जहां नहीं करना चाहिए वहां करने का सोचते हैं, जो कर्तव्य है उससे जी चुराते हैं-यही स्वार्थी दृष्टिकोण है। जहां व्यक्तिवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, वहां समाजवादी बन जाते हैं, जहां समाज का प्रश्न आता है, वहां व्यक्तिवादी बन जाते हैं।
व्यापार में अनैतिकता को छोड़ने का प्रश्न आता है तब कहता है-मैं अकेला अनैतिकता नहीं करूंगा तो क्या होगा?
२४ में धर्म के सूत्र
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