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का प्रारम्भ दृष्टि से होता है। हमारे जीवन की सद्प्रवृत्ति का प्रारम्भ दृष्टि से होता है।.
जिसकी दृष्टि सम्यक् होती है, वह सफल हो जाता है और जिसकी दृष्टि गलत होती है, वह विफल हो जाता है। हमारे जीवन की सफलता और विफलता का आधार दृष्टि ही है।
दर्शन पहले चाहिए। दर्शन से ज्ञान होगा। दृष्टि के आधार पर ही अंकन होता है वस्तु का और व्यक्ति का। एक व्यक्ति के प्रति किसी की धारणा बन गई कि अमुक गलत आदमी है। वह यदि अच्छा काम भी करता है तो उसका अंकन दृष्टि के अनुसार ही होगा। किसी व्यक्ति के प्रति यदि दृष्टि ठीक है तो उसके गलत काम करने पर भी ठीक मान लेते हैं। ज्ञान वैसा ही होता है जैसी धारणा होती है। इसीलिए भगवान ने कहा कि दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता। जिसे ज्ञान नहीं है, उसे चरित्र नहीं मिलता। चरित्र के बिना मोक्ष नहीं और मोक्ष के बिना निर्वाण नहीं होता। यह क्रम है। धर्म कैसे?
'धर्म कैसे'-इस प्रक्रिया के छह द्वार हैं१. सुलभबोधी-मार्गानुसारी २. सम्यक्दृष्टि ३. देशव्रती ४. महाव्रती ५. वीतराग ६. अयोग पहली कक्षा सुलभबोधी की है। वह धर्म को नहीं जानता,
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धर्म के सूत्र
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