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________________ है। आज अणुबम, हाइड्रोजन बम, स्पुतनिक आदि का निर्माता मनुष्य है। उसने अपनी चेतना-शक्ति के द्वारा सारा कार्य किया है। अज्ञानी कुछ भी नहीं कर सकता। वह चेतना, ज्ञान हमारे मस्तिष्क के भीतर रहता है। सारी दुनिया का संचालन करने वाली चेतना है। उसका विकास धर्म के द्वारा हुआ है। तन्मयता और एकाग्रता से विकास होता है। चंचलता से विकास नहीं होता। वैज्ञानिकों ने इतना विकास किया है, वह तन्मयता व एकाग्रता से ही हुआ है। वैज्ञानिक आइन्स्टीन कार्य में रत थे। नौकर खाना लेकर आया और रखकर चला गया। कुछ समय बाद एक मित्र मिलने आया। वह बैठा रहा। आइन्स्टीन ने उसको देखा तक नहीं। तब उस मित्र ने वह खाना स्वयं खा लिया और चला गया। आइन्स्टीन ने काम निपटने पर खाने के लिए हाथ बढ़ाया तो चुल्लू किया देखा। उसने सोचा-मैंने भोजन तो कर लिया है, फिर क्यों? वह वापस काम में लग गया। लोग उसे पागल कहेंगे, पर आप लोग निश्चित मानिए, आज तक दुनिया में बड़े काम ऐसे पागलों ने ही किए हैं। चेतना को विकसित करने का साधन है धर्म। उसके बिना आत्मा में छिपी अनन्त शक्ति को प्रकट नहीं कर सकते। मन की एकाग्रता और ध्यान की प्रक्रिया से आत्मा परमात्मा बन जाती है। कष्ट की परिस्थिति आ सकती है, पर चेतना के साथ जुड़े बिना उसकी अनुभूति नहीं होती। किसी के प्रिय व्यक्ति का देहावसान हो जाता है, पता न हो तो कष्ट नहीं होता। पता होने पर वह रोने लगता है। सेठ ने एक सराय में ठहरे हुए लड़के को बाहर निकालने का आदेश दिया, क्योंकि उसके धर्म आवश्यक क्यों? : १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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