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जानता है, मेरा घर आखिर मेरा घर है । यह रास्ता है, इसे रोकने का मेरा अधिकार नहीं। बिना संयम के घर नहीं चल सकता। घर में मिठाई आती है । घर के सब सदस्य बांटकर खाते हैं । कोई भी आग्रह नहीं करता कि सब मिठाई मुझे ही दे दो । संयम की बात जानते हैं, इसलिए आग्रह नहीं करते । संयम के बिना परिवार नहीं बनता ।
धर्म का तीसरा तत्त्व है - तपस्या । क्या तपस्या के बिना समाज चल सकता है? नहीं चल सकता । सामाजिक जीवन में स्वार्थों का विसर्जन करना बहुत अनिवार्य है । कुछ व्यक्ति खाते हैं और कुछ व्यक्ति टुकुर-टुकुर कर सामने देखते रह जाते हैं। इस स्थिति में सामाजिक प्रतिक्रिया पैदा होती है। ऐसी स्थिति को (हिंसा या सामाजिक विघटन को ) अल्पाहार ( ऊनोदरी) व
संग्रह के प्रयोग से सहजतया टाला जा सकता है । इतिहास में अनेक मोड़ ऐसे आए हैं जहां ऐसी स्थितियों को सामाजिक लोगों ने टाला है ।
इस परिप्रेक्ष्य में अहिंसा, संयम और तप क्या आवश्यक नहीं लगते? पांच दिन का प्रयोग करके देखिए कि ये आवश्यक हैं या नहीं? इनके बिना समाज और परिवार चलता है या नहीं, स्वयं अनुभव हो जाएगा। क्या कोई कह सकता है कि धर्म की आवश्यकता नहीं है?
क्रियाकाण्ड के बारे में प्रश्न हो सकता है, उपचार और व्यवहार की बातों में मतभेद हो सकता है, धर्म की आवश्यकता नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सकता ।
परन्तु
अरहन्नक नौका में जा रहा था। नौका जब मझधार में पहुंची तो देवता ने उसमें बैठे लोगों से कहा- 'धर्म को छोड़
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धर्म आवश्यक क्यों ? ८ १५
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