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________________ बोया जा सके। खेत की सारी भूमि को बोने से पहले उभारना पड़ता है। अपने हृदय में बीज बोना है तो उसे उखाड़ना ही होगा। __मानव के विकास की अशेष प्रक्रिया ज्ञान की उपलब्धि से जनित है। रोटी खाना सरल है, परन्तु रोटी बनाना और रोटी कमाना सीखना पड़ता है। रोटी कमाने में श्रम करना पड़ता है। यदि चिन्तामणि रत्न सुलभ होता तो किसी को कार्य करने की आवश्यकता नहीं रहती। यदि कल्पवृक्ष, कामकुंभ और कामधेनु सुलभ होती तो कुछ भी करना आवश्यक नहीं होता। श्रम करना कोई नहीं चाहता, फिर भी करना पड़ता है। चिन्तामणि रत्न और कल्पवृक्ष मनुष्य की दस अंगुलियां हैं। मनुष्य इनसे श्रम करता है रोटी, मकान बनाता है। मनुष्य ने इन्हीं अंगुलियों के द्वारा विकास किया है। उसने धर्म के क्षेत्र में भी विकास किया है। धर्म का पहला तत्त्व है-अहिंसा। पहले मनुष्य जंगल में रहता था, गुफा में रहता था। वृक्ष की छाल को ओढ़ता या नग्न ही रहता था। फिर मनुष्य ने विकास किया, समाज बनाया और बस्ती बनाकर रहने लगा। समाज का निर्माण अहिंसा के आधार पर हुआ है। जंगली या हिंस्र जानवरों का समाज नहीं होता। वे एक-दूसरे को खा जाते हैं। समाज अहिंसा व प्रेम के आधार पर ही बनता है। एक-दूसरे की मर्यादा समझने पर समाज बनता है। धर्म का दूसरा तत्त्व है-संयम। एक गली है। एक व्यक्ति मार्ग में खाट डालकर सो जाए और दूसरा रास्ता मांगे तब न मिले तो ? प्रत्येक व्यक्ति अपनी मर्यादा को समझता है। वह १४ म धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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