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में परिवर्तन आता है और उससे व्यवहार में परिवर्तन आता है। अहिंसा व्रत को स्वीकार करने से शेष धर्म स्वयं आ जाता है। केवल व्रत को स्वीकार करें, उसे व्यवहार में न लाएंगे तो वह भार बन जाएगा। अपेक्षा है, व्रत भार न बनकर जीवन के विकास का हेतु बने।
१८२ म
धर्म के सूत्र
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