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________________ 'आया चेव अहिंसा, आया हिंसाति निच्छवो एस । जो कोई अप्पमत्तो, अहिंसको हिंसको इयरो ॥ आत्मा ही हिंसा है, आत्मा ही अहिंसा है। जो अप्रमत्त है, उससे जीव मरता है तो उसका पाप नहीं लगता। जो प्रमत्त है, उससे कोई जीव नहीं मरता है तो भी हिंसा होती है___आचार्य भिक्षु ने कहा हैजीव जीवे ते दया नहीं, मरे ते हिंसा मत जाण। मारण वाले ने हिंसा कही, नहीं मारे ते दया गुणखाण ॥ जीव जीता है उसका धर्म नहीं होता और कोई जीव मरता है उसका पाप नहीं लगता। मैं जब छोटा था तब हेमराजजी स्वामी के पास जाता था। जोधपुर में एक बार उनके मुंह से बात निकल पड़ी कि केवलज्ञानी चलते हैं, पैर से जीव मर जाते हैं तो उन्हें पुण्य की क्रिया लगती है। मैंने पहले नहीं सुनी थी। मुझे नई बात लगी। सन्देह हुआ। पूछा-आपने क्या कहा? उन्होंने कहा-अब नहीं बतलाऊंगा। मैंने काफी आग्रह किया, पर वे नहीं बोले। हिंसा का पाप लगता है। इसलिए नहीं कि वह जीता है या मरता है। देखना यह है कि मारने वाला प्रमत्त है या अप्रमत्त, राग-द्वेष सहित है या रहित, मोह से ग्रस्त है या नहीं। जब तक शरीर है, जीव हिंसा से सर्वथा बच नहीं सकते। हम चर्मचक्षु से देख नहीं पाते, लेकिन माइक्रोस्कोप से पता चलता है कि कितने जीव हैं। मैं बोल रहा हूं, अभी कुछ भी दिखाई नहीं देता। बैंगलोर में हमने देखा-जब हम बोलते हैं तो सांप की गति की तरह शब्द दौड़ते जाते हैं। डेक्कन कॉलेज में वहां हिंसा और अहिंसा म १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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