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वे क्यों चलते हैं। फिर भी यह दुनिया है। लोग अनुकरणप्रिय होते हैं।
महाकवि माघ एक बार नदी में स्नान करने गए। पास में लोटा था। सोचा, कल भी लाना पड़ेगा इसलिए नदी के तट पर बालू में गाड़ दिया। किसी ने देख लिया मोघ ने गाड़ा है तो कोई न कोई प्रयोजन है। देखते-देखते ही पांच-दस लोगों ने अपने-अपने लोटे गाड़ दिए। सब चले गए, पीछे से एक व्यक्ति और देख रहा था। उसने सब लोटे निकाल लिये। दूसरे दिन माघ आए। देखा तो लोटा नहीं मिला, जगह-जगह खड्डे ही पड़े हैं, तब माघ ने कहा-गतानुगतिको लोकः, नः लोकः पारमार्थिकः।
लोग गतानुगतिक होते हैं, अनुकरणप्रियः होते हैं, पारमार्थिक नहीं होते। ... समाज में कोई आदमी अहं से पागल होकर कोई काम करता है। क्या सबको पागल हो जाना चाहिए? जिसके मन में अहंकार है, वह करे, मैं पागल क्यों बनूं? जब सिर पर प्रदर्शन का भूत सवार हो जाता है तब कौन पागल नहीं होता? बाहुबली जैसे चरमशरीरी के मन में अहंकार आ गया कि मैं भरत को वंदना करने नहीं जाऊंगा? फिर साधारण गृहस्थ की तो बात ही क्या?
समाज में जिनकी शक्ति व क्षमता नहीं है, फिर भी अनुकरण, प्रधान होने के कारण वे बहुत बड़ा काम कर लेते हैं। समाज में दुर्व्यवस्था फैलती है, उसका दोषी पहला आदमी है।
हिंसा और अहिंसा को स्थूलरूप में पकड़ा गया है। हरिभद्र ने कहा
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धर्म के सूत्र
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