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________________ 1 मनुष्य अपने को असमर्थ पाता है । तीसरी हिंसा संकल्पजा है । घर में लड़ाई करना जरूरी नहीं है । रोटी खाने में, पकाने में भी लड़ाई चलती रहती है। उसे ज्यादा परोस दिया, मुझे कम परोस दिया। छोटी-छोटी बातों को लेकर घर में लड़ाई चलती रहती है । यह हिंसा जरूरी नहीं है । घर में होने वाली यह हिंसा अनिवार्य नहीं है । यह संकल्प की हिंसा है । व्यापार में भी लड़ाई हो जाती है। थोड़े समय तक साथ में रहते हैं, फिर अलग-अलग हो जाते हैं । विवेकानन्द ने लिखा है कि अमेरिका में पांच आदमी मिलकर कम्पनी बनाते हैं। सैकड़ों वर्षों तक साथ में रहते हैं, उन्हें कठिनाई नहीं होती। भारत की स्थिति यह है कि यहां दो आदमी मिलकर कम्पनी बनाते हैं। जब विकास या वृद्धि होने लगती है तब अलग-अलग होने लगते हैं । एक आदमी दूसरे की उच्चता सह नहीं सकता । यह मानसिक हिंसा है। वह त्याग जरूरी है । जिसका जीवन पर असर आए और दूसरों पर भी असर आए । तब व्रत की पूर्णता होती है । केवल मुझ पर असर आए, दूसरों पर नहीं - यह विकलांगता है । कोई सामायिक करे, उसका दूसरों पर क्या असर आए ? परिवार के सदस्यों के साथ लड़ाई न हो तब दूसरों को असर मालूम देता है । मान और अपमान की बात भी सामने न लाए । धनी सोचता है - विवाह ऐसा करूं जैसा आज तक किसी ने नहीं किया । दशार्णभद्र ने सोचा, भगवान को वन्दना करने इस प्रकार साज-सज्जा से जाऊं जैसा आज तक कोई तक कोई न गया हो। न जाने कितने इस मोह में खराब हो गए। आदमी से अहं ऐसा कराना चाहता है जो आज तक नहीं हुआ। वह लोगों को गलतमार्ग पर चलने को बाध्य कर देता है । यद्यपि गलती उनकी है कि 1 Jain Education International हिंसा और अहिंसा ८ १७३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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