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के डायरेक्टर ने दिखाया कि बोलने से भाषा की कैसी गति होती है । गाना शुरू किया, यंत्र में आकृति मंडती जा रही है । भाषा के शब्द सांप की भांति रेंगते हुए चले जा रहे हैं । अभी तो दिखाई नहीं दे रहा है, चाहे हम कितना ही क्यों न देखें । एक आदमी लिखता है, कलम और कागज के बीच में कुछ दिखाई नहीं देता । यन्त्र से देखें तो कलम और कागज के बीच कितने ही जीव मिलेंगे। जल में जीव है, जमीन पर जीव है, एक भी अणु ऐसा नहीं है जहां जीव नहीं है । अवधिज्ञान प्राप्त होने पर अवधिज्ञानी जब देखते हैं तो जीव ही दिखाई देते हैं।
जब तक शरीर है, जीव हिंसा से बचना कठिन है। भगवान ने बताया- तुम संयमपूर्वक चलो, संयम से ठहरो, संयम से बैठो, संयम से सोओ, संयम से खाओ - पाप का बन्धन नहीं होगा । जीव है या नहीं। इसे छोड़ दो। क्या हिंसा से बच जाते हैं या नहीं, पर भावना से तो बच ही जाते हैं । आज अहिंसा के साथ जीव का सम्बन्ध जोड़ रखा है और भावना का प्रश्न उड़ा दिया है।
हिंसा के कारण क्या हैं? हिंसा की ओर समाज को कौन ले जाता है? इन प्रश्नों को हमें गहराई से सोचना है । आज अहिंसा व्रत को स्वीकार करें। नए युग के सन्दर्भ में अहिंसा की नई व्याख्या समझनी चाहिए और यह आवश्यक भी है।
१७६ धर्म के सूत्र
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