________________
की। इस चिन्तन से धर्म की आत्मा ही मर गई। धर्म होता है वास्तव में त्याग और संयम से, और त्याग, संयम का रास्ता बड़ा कठिन होता है। इस प्रकार के धर्म में सस्ते या महंगेपन की बात नहीं उठती। धर्म की आत्मा तक पहुंचने पर व्यक्ति इन मूल्यांकनों की दृष्टि से बहुत ऊपर चला जाता है। इतना व्यापक और विराट क्षेत्र है धर्म का। ___राजा ने घोषणा की कि मैं गुरु बनाना चाहता हूं, पर गुरु उसी को बनाऊंगा जिसका आश्रम सबसे बड़ा होगा। उस समय राजा का गुरु बनना बहुत बड़ी बात होती थी। राजा जिनका अनुयायी होता, प्रजा भी उसकी अनुयायी बन जाती। सबके मन में कुतूहल जगा। प्रत्येक संन्यासी राजा को अपना भक्त बनाने की सोचने लगा।
अनेक धर्मगुरु एकत्रित हुए। एक ने कहा-'मेरा आश्रम पांच एकड़ जमीन में है।' दूसरे ने खड़े होकर कहा-'मेरा आश्रम दस एकड़ में है।' इस प्रकार आश्रम की भूमि एक-दूसरे से बढ़ती गई। राजा असमंजस में पड़ गया-किसे गुरु बनाए। अन्त में एक संन्यासी आया, बोला-'राजन्! मेरा आश्रम सबसे पड़ा है।' राजा ने पूछा- कितना बड़ा?' संन्यासी बोला-'संख्या में बता नहीं सकता, स्वयं चलकर देखें।' राजा उस संन्यासी के साथ चल पड़ा। अन्यान्य संन्यासी भी कुतूहलवश उनके साथ चल पड़े। संन्यासी राजा को एक जंगल में ले गया और एक वृक्ष के नीचे खड़ा होकर बोला-'राजन्! यह है मेरा आश्रम। ऊपर जो आकाश है वह मेरे आश्रम की छत है और नीचे पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण में जितनी भूमि का विस्तार है, वह मेरे आश्रम की भूमि है।'
म धर्म के सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org