________________
कठिन होता है। यह किसी के वश की बात नहीं। धर्म का सीधा रास्ता भी शास्त्रों में बताया गया है। शास्त्रकार कहते
'व्यासं वा व्यासपुत्रं वा, यो ददाति हलं खलं।
तस्य पुण्यप्रभावेन,
स्वर्गे झल्लर-मल्लरा ॥' जो व्यक्ति व्यास या व्यास के पुत्र को हल देता है, उस पुण्य-प्रभाव से स्वर्ग में उसको आनन्द ही आनन्द प्राप्त होता है।
कितना सरल और सीधा रास्ता है। न तपस्या करनी पड़ती है, न त्याग करना पड़ता है। न तो स्वयं को खपाना पड़ता है और न ही कोई अन्य कष्ट उठाना पड़ता है।'
पंडित का इतना कहना मात्र था कि देखते ही देखते एक नहीं, दस हल आ गए। शास्त्र की बात को कौन असत्य माने!
यह स्वार्थ का दृष्टिकोण है। स्वार्थ का दृष्टिकोण रहा धर्म के नेताओं का और स्वार्थ का दृष्टिकोण रहा धर्म के अनुयायियों का। दोनों में स्वार्थ काम करने लगा। धर्म के नेताओं ने समझा कि इतने मात्र से यदि भावनाएं पूरी होती हैं तो धर्म को क्यों न अर्थ के साथ जोड़ दिया जाए! अनुयायियों ने सोचा-यदि पैसे से धर्म होता है तो क्यों न इस सस्ते या महंगे धर्म को अपनाया जाए। आज दोनों एक-दूसरे को ठग रहे हैं। धर्म के नेता अनुयायियों को ठगते हैं और अनुयायी धर्म के नेताओं को ठगते हैं।
इस चिन्तनधारा ने धर्म के क्षेत्र में अनेक विकृतियां पैदा
धर्म : कितना महंगा कितना सस्ता? म ७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
Jain Education International