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________________ है। चैतन्य अरूपी है, वह सामने दिखाई नहीं देता। आत्मा को किसी ने भी नहीं देखा। हम केवल छायामात्र को देख रहे हैं। यही समझिए सारी दुनिया छाया में जीती है। एक कुशल चित्रकार कहीं जा रहा था। उसने देखा वातावरण अत्यन्त सुन्दर है। चारों ओर मनोमुग्धकारी छटा है। सोचा-कोई अच्छा-सा चित्र बनाऊं। इतने में उसने देखा एक सुन्दर ग्रामीण बाला उधर से आ रही थी। सुन्दरता में प्रकृति का अद्भुत कृति ही मालूम पड़ती थी वह बस, निश्चय किया, इसी का चित्र बनाऊं। चित्रकार उसकी तरफ बढ़ा लेकिन वह बेचारी घबरा गयी और भय से दौड़ने लगी। चित्रकार के समझाने पर वह किसी प्रकार चित्र बनवाने के लिए तैयार हुई। चित्रकार ने चित्र बनाया और चित्र भी अनुपम बना। उसे एक चित्र प्रदर्शनी में उसने रख दिया। लोगों ने चित्र की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उस चित्र की बोली दस हजार रुपयों तक चढ़ गयी। भाग्यवश वहां अकाल पड़ा और जिस ग्राम-बाला का वह चित्र था वह भीख मांगती हुई, वहीं प्रदर्शनी के पास पहुंच गयी। उसका पति भी उसके साथ था। उसने देखा वह चित्र उसकी पत्नी का है। वह चिल्लाया-कैसी विडम्बना है, जिसका चित्र है वह भीख मांग रही है और उसके चित्र का सहस्रों रुपये मोल है। वहां खड़े एक व्यक्ति ने उसे समझाया-भाई! दुनिया छाया को मानती है। मूल का मूल्य नहीं मानती। इसी को लक्ष्य कर मैंने लिखा मूलस्पर्शो न खलु सुलभो दृष्टिरेवास्ति मुग्धा, प्रायो लोकः प्रतिकृतिरतो मूल्यदाने विचक्षुः। चित्रं मूल्यं नयति विपुलं चैकतश्चित्रकक्षे, यस्या नार्या मुहुरवमता भिक्षते चैकतः सा ॥ धर्म और विज्ञान में १५५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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