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धर्म और विज्ञान
धर्म और विज्ञान या अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद-यह मेरे विचार से वाद-विवाद का विषय बनता ही नहीं है। धर्म और विज्ञान दो नहीं, वस्तुतः एक ही विषय है। धर्म स्वयं विज्ञान है। एक वैज्ञानिक यहां हिन्दुस्तान में बैठा हुआ किसी प्रकार का प्रयोग या अन्वेषण करता है और जो निष्कर्ष उसके प्रयोग का निकलेगा, वही निष्कर्ष अमेरिका में बैठा हुआ एक वैज्ञानिक उसी तरह का प्रयोग करके प्राप्त करेगा। हजार वर्ष पहले किसी वैज्ञानिक ने प्रयोग करके जो फल निकाला था, हजार वर्ष बाद भी आज का वैज्ञानिक वैसे ही प्रयोग से वही फल प्राप्त करेगा। अतः स्पष्ट है कि त्रिकालाबाधित सत्य ही विज्ञान हैं। देश या काल के कारण इसमें कोई अन्तर नहीं आ सकता। इसी प्रकार धर्म के लिए भी हम कह सकते हैं। अतः मानना पड़ेगा, धर्म स्वयं विज्ञान है। किसी वस्तु को जानने का जो माध्यम है, वह है विज्ञान और उस माध्यम के द्वारा जो कुछ प्राप्त होता है, वह है धर्म। विज्ञान वस्तु को जानने की प्रक्रिया है और धर्म आत्मा को पाने कि प्रक्रिया है, साधन है।
जहां तक प्रयोग का प्रश्न है वह गलत भी हो सकता है और सही भी। यह धर्म और विज्ञान दोनों पर लागू होता
१५४ धर्म के सूत्र
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