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________________ ज्ञान का विकास ज्ञान की साधना का क्षेत्र विशाल है। यदि आदमी अज्ञानी होता तो आज भी वह जंगलवासी होता। उसने गृह-निर्माण की कला सीखी, कपड़ा बनाना सीखा। पहले लिखने के साधन नहीं थे। भोजपत्र और ताड़पत्र पर लिखा जाता था। दक्षिण भारत में ताड़पत्रों पर लिखा हुआ बहुत मिलता है। तंजौर के पुस्तकालय में हमने देखा ताड़पत्रों का पार ही नहीं है। कागज का विकास बहुत देरी से हुआ। आदमी ने जाना और कागज बनाया। जाना तब सिक्के बनाए। पहले सिक्के थे ही नहीं। वस्तु का परस्पर विनिमय होता था। आदमी ने जाना तब इतनी वस्तुएं बनीं। पहले फल-फूल खाते थे, आज खाद्य पदार्थों का विकास हुआ है। भारत और चीन में खाने की वस्तुओं की बहुलता है। पचासों प्रकार की मिठाइयां हैं, तली हुई वस्तुएं हैं। जो विकास हुआ है, वह ज्ञान के द्वारा ही हुआ है। ज्ञान के अभाव में विकास नहीं होता। स्मृति परम्परा को भी कभी नहीं मिटाया जा सकता है, जब तक स्मृति है। मनुष्य की विशेषता है स्मृति। भैंसा, बैल, घोड़ा और ऊंट आदि में स्मृति नहीं है। स्मृति होती तो वे क्रांति कर देते, घेराव कर देते। आदमी इन पर भार भी लादता है और मार भी देता है। खाने को भी पूरा नहीं देता। फिर भी वे कुछ नहीं करते, क्योंकि उनके पास स्मृति नहीं है, चिन्तन नहीं है। मानव में स्मृति है। आदमी अतीत को भूलता नहीं है। जिसको भूलने का प्रयत्न करेंगे, वह ज्यादा याद आएगा। धर्म और रूढ़िवाद : १४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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