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सामायिक धर्म
'देहप्रसादो रसनाजयेन, मनःप्रसादः समताश्रयेण । दृष्टिप्रसादो ग्रहमोचनेन, पुण्यत्रयीयं मम देव! भूयात् ॥'
प्रभो! रसना-विजय के द्वारा मेरा शरीर प्रसन्न रहे। समता के द्वारा मेरा मन प्रसन्न रहे, आग्रह-मोचन के द्वारा मेरी दृष्टि प्रसन्न रहे। प्रभो! यह पुण्यत्रयी सदा मेरे साथ रहे।
जो समता का आस्वाद नहीं लेता, उसका मन प्रसन्न नहीं रहता। सामायिक मन को प्रसन्न करने का अपूर्व साधन है।
राजसमन्द में मेरे पास पांच-सात वकील बैठे थे। उनमें एक वकील सामायिक नहीं करता था। उसका उसमें विश्वास भी नहीं था। परम्परा से वह जैन अवश्य था। मैंने उससे पूछा-'सामायिक क्यों नहीं करते?'
उसने कहा-'मेरा विश्वास नहीं है।'
मैंने बताया-'जो सामायिक नहीं करता, वह सच्चा साम्यवादी भी नहीं होता (वह भाई साम्यवादी था)। सामायिक का अर्थ मुंह पर पट्टी बांधना ही नहीं है। सामायिक का अर्थ है-समता की साधना। सामायिक भगवान महावीर के समूचे धर्म का सार या निष्पंद है। समता को छोड़ने पर महावीर के धर्म में शून्य
१३४ र धर्म के सूत्र
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