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________________ नौकर-चाकर कोई भी हो, उसे जितना दुलारा जाएगा, उतना ही अच्छा फल मिलेगा। यहां बच्चा रोता है तो उसे गाली देना शुरू कर देते हैं । बच्चा और कुछ सीखे या सीखे, गाली देना तो सीख ही जायेगा । माता पीटना भी शुरू कर देती है । यहां सारी उल्टी धारा है। वहां प्रेम की धारा है, यहां आक्रोश की धारा है। वहां प्रेम दिया जाता है। जहां प्रेम दिया जाता है, उसके साथ कुछ भी दिया जा सकता है। दूसरी वस्तु कितनी ही दें, यदि प्रेम नहीं देते हैं तो कुछ नहीं है । 1 नौकर को भी प्रेम देकर उसके हृदय को जीत सकते हैं बलात् या गाली से उसका हृदय नहीं मिलता । अहिंसा अणुव्रत में 'सिंह नहीं मारूंगा' इस त्याग के स्थान पर किसी नौकर को गाली नहीं दूंगा, उसकी आजीविका का विच्छेद नहीं करूंगा।' यह नियम लेंगे तो वर्तमान में व्रतों का प्रभाव पड़ेगा। व्रतों का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ना चाहिए। धर्म करने के दृष्टिकोण को बदलना है। एकांगी दृष्टिकोण न बनाएं। इहलोक और परलोक दोनों को सुधारना है । इस प्रकार धर्म का दृष्टिकोण बनने से व्यक्ति सुधरेगा और समाज सुधरेगा । Jain Education International धर्म का व्यावहारिक मूल्य १३३ www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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