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लोगों के हाथ में सत्ता रहेगी तो सर्वहारा वर्ग का कल्याण नहीं होगा । इस दिशा में मार्क्स ने आश्चर्यपूर्ण कार्य किया। दुनिया का आधा भाग साम्यवादी बन गया । सब सम्पत्ति सरकार की है । उद्योग, कृषि, व्यापार सब राष्ट्र की सम्पत्ति है । चिकित्सा सबको मुफ्त प्राप्त है । भिखारी भी नहीं है, वेश्या भी नहीं है । लोगों को सोचना पड़ता है, कर्मवाद कहां है? आज की दुनिया इतनी छोटी हो गई है कि चौबीस घंटों में एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचा जा सकता है। ऐसी स्थिति में दूसरे देशों की परिस्थिति से अनभिज्ञ नहीं रहते । इतना काम मार्क्स ने किया । एक प्रकार से दुनिया का नक्शा बदल दिया । एक बात की कमी न होती तो साम्यवादी व्यवस्था वरदान बन जाती । व्यक्ति के उपासना पक्ष को गौण कर दिया और धर्म को स्थान नहीं दिया - यही कमी है।
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भारत में समाज की जो व्यवस्था है, उसमें सैकड़ों भूखे मर रहे हैं। दस करोड़ से ज्यादा लोगों को पूरा भोजन भी नहीं मिलता। डॉ. लोहिया ने दिल्ली में मुझसे कहा - मुनिजी ! आप गांव में मेरे साथ चलिए और देखिए, अहिंसा - प्रधान देश में कितनी क्रूरता होती है । जीवित कछुए को काट-काटकर बेचा जाता है ऐसा निर्दयतापूर्ण व्यवहार दुनिया में कहीं नहीं है । मुम्बई में कई पश्चिमी लोग धर्म-प्रधान भारत को देखने आए थे। उन्होंने देखा - एक मुर्दा-सा घोड़ा तांगे को खींच रहा है जिस पर इतने आदमी बैठे हैं कि घोड़ा दबा जा रहा है, फिर ऊपर से चाबुक की मार और । वे भाई पूज्य गुरुदेव श्री के पास आए और बोले- हम धर्म को सीखने आए थे, पर बाजार में लोगों को देखा तो हमारी भावना ही बदल गई। हमने सोचा- वापस चला जाना
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धर्म का व्यावहारिक मूल्य १३१
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