________________
परन्तु पीठ पर लगा। उस समय गुरुदेव ने कहा-कोई बात नहीं है, इतने से भी काम चल गया। एक भी रोम में प्रतिक्रिया नहीं हुई। हो सकता है कोई पत्थर की जगह गोली मार दे।
प्राण लूटने पर धार्मिक या साधक सोचेगा, प्राण ही लूटा, पर धर्म तो नहीं लूटा। जो धीर पुरुष होता है, वह खैर मना 'लेता है। यह जो चिन्तन की मनोवृत्ति है, वह साधनाशील या तत्त्ववेत्ताओं में प्राप्त होती है। जिन्होंने दुनिया को कुछ नया दिया है, उन्हें दण्ड ही मिला है।
वैज्ञानिक गेलेलियो ने दूरवीक्षण का आविष्कार किया था। लोगों ने कहा-भगवान की सृष्टि में विरोध उत्पन्न करना शुरू कर दिया है, कहता है आंखों से भी आगे देखो। आखिर उसे मृत्युदण्ड दिया गया। दो-चार शताब्दी तक वैज्ञानिकों को इस कठिनाई का सामना करना पड़ा। धर्माचार्य कहते हैं कि वैज्ञानिक लोग महाप्रभ ईशु की आज्ञा का उल्लंघन कर रहे हैं, फांसी दे दो। आज वैज्ञानिकों का पलड़ा भारी हो गया है और धर्माचार्यों का हल्का। इस स्थिति को आने में चार शताब्दियां लगीं।
आलोचना सुनने में दोष क्या है? पारा ऐसे ही हजम नहीं होता। नग्न सत्य को पचाने की ताकत होनी चाहिए। वह अलौकिक होता है। साधारण आदमी की समझ में आए वह लौकिक, जो न आए वह अलौकिक होता है। आज धर्म के क्षेत्र में गड़बड़ी है। उसका कारण है-अलौकिक पर जितना ध्यान दिया, उतना लौकिक पर नहीं। समाज में भी गड़बड़ी का कारण है-जितना ध्यान लौकिक पर दिया उतना अलौकिक पर नहीं दिया। मार्क्स का चिन्तन था-समाज के छोटे लोगों के हाथ में सत्ता नहीं आएगी तो वर्ग-संघर्ष समाप्त नहीं होगा। पूंजीपति या सत्तालोलुप
१३० म धर्म के सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org