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धर्म का व्यावहारिक मूल्य
'तथा परे न रज्यन्ते, उपकारपरे नरे। यथापकारिणी भवान्, स्वामिनिदमलौकिकम् ॥'
भगवन्! दूसरे लोग उपकार करने वाले का ध्यान नहीं रखते जितना कि आप अपने अपकार करने वाले का रखते हैं। उपकारी का ध्यान रखना स्वाभाविक है। आप अपकारी पर जितना ध्यान देते हैं, उतना उपकारी पर भी नहीं रखते।
संगम ने भगवान को बहुत कष्ट दिया। साधारण आदमी तो कष्ट देने पर सोचता है, कितना नीच है, तुच्छ है, मुझे कष्ट दे रहा है। भगवान ने सोचा-मेरे निमित्त से संसार का उद्धार हो रहा है, पर यह मेरे निमित्त से डूब रहा है। उसकी चिन्ता की। आप अपकारी पर ध्यान देते हैं। यह आपकी अलौकिकता है।
लौकिक और लोकोत्तर दो हैं। इहलौकिक में जी रहे हैं, पारलौकिक में जाना है। एक में हैं, एक में जाना है। भगवान महावीर ने एकांगी दृष्टिकोण नहीं दिया। केवल इहलोक भी नहीं, केवल परलोक भी नहीं।
साम्यवाद के सिद्धान्त का पहले पहल मार्क्स ने प्रतिपादन
१२८ र धर्म के सूत्र
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