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व्यवहार करता है वह एक बार सफल हो सकता है परन्तु आगे के लिए काम रुक जाता है। पश्चिमी जगत् में व्यवहार शुद्धि और नैतिकता पर बल दिया गया है
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धर्म और नैतिकता में भेद है। नैतिकता एक में नहीं होती जबकि धर्म एक में हो सकता है। दूसरा दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करता है, यह नैतिकता का क्षेत्र है । आप ध्यान, सामायिक आदि अकेले कर सकते हैं पर नैतिकता नहीं । नैतिकता द्विष्ठ होती है, दो से सम्बन्ध रखती है।
नैतिकता हमारे धर्म का प्रतिबिम्ब है । जिसके जीवन-व्यवहार में शुद्धि न हो तो समझना चाहिए, जीवन में धर्म नहीं आया । आज धर्म का चक्का उल्टा हो गया है। पहले नैतिक होना चाहिए फिर धार्मिक। आज हो यह रहा है कि आदमी धार्मिक तो जन्म से ही हो जाता है परन्तु नैतिक मौत तक नहीं बन पाता। इसलिए धर्म की विडम्बना हो रही है । मन्दिर में भक्ति करते हुए सेठ को देखकर एक व्यक्ति ने कहा- क्या यह वही है जो कल ठग रहा था । इस दो प्रकार के व्यक्तित्व ने ही भारत की आत्मा को नष्ट कर दिया है। आज धर्म को अस्वीकार करने वाले कुछ लोग जितने नैतिक व धार्मिक लगते हैं, उतने तथाकथित धार्मिक भी नहीं लगते । आज धर्म के लिए नई क्रान्ति की आवश्यकता है । कुछ लोग कहते हैं, भाइयों को सामायिक करने का नियम दिलाइए, दर्शन करने का नियम दिलाइए, हरित खाने का त्याग दिलाइए । सब सुझाव देते हैं । मेरे मन में इतना उत्साह नहीं है । मैं देखता हूं साधुदर्शन, मालाजाप, सामायिक आदि सब अच्छे हैं । सामायिक को मैं सबसे उत्कृष्ट धर्म मानता हूं, जिसमें समता की साधना होती है। इनसे पहले
१२६ धर्म के सूत्र
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