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आदमी के मन में लालच होता है, वह एक साथ में सारा लेना चाहता है-यह अल्पकालीन नीति है। जो व्यापारी दीर्घकालीन लाभ की कामना करता है, वह व्यापार में अप्रामाणिक नहीं रहता। क्या वह व्यापार में इसलिए अप्रामाणिकता नहीं करता कि वह परलोक बिगाड़ना नहीं चाहता? वे जानते हैं, सफल व्यापारी वही हो सकता है जो प्रामाणिकता से व्यापार करता है। जो अप्रामाणिकता से व्यापार करता है वह एक बार लाभ कमा सकता है परन्तु अन्ततः असफल होता है। प्राचीनकाल में भी जिन लोगों ने प्रामाणिकता को प्राथमिकता दी, उनका विश्वास जमा है।
भैंसाशाह नामक एक जैन व्यापारी थे, वे बड़े धनी थे। जितने बड़े धनी थे उतने ही प्रामाणिक थे। उनकी ख्याति सब जगह फैल गई थी। व्यापारियों में उनके नाम की प्रतिष्ठा थी। एक बार वे अहमदाबाद गए। रुपयों की आवश्यकता हुई। बाजार में गए। एक व्यापारी से कहा-'मुझे एक लाख रुपये चाहिए।' व्यापारी ने परिचय पूछा तो साथ के एक भाई ने परिचय दिया-'आप भैंसाशाह हैं।' व्यापारी ने पूछा-'क्या आप रखना चाहते हैं?' भैंसाशाह ने तत्काल अपनी मूंछ का एक केश उखाड़ा और कहा-'यह लो, अपनी दुकान पर रख लो।' उनके नाम की प्रतिष्ठा थी। तत्काल व्यापारी ने एक लाख रुपये दे दिए। भैंसाशाह रुपये लेकर चले गए। अवधि से पहले भैंसाशाह ने रुपये भेजकर अपना बाल (केश) वापस मंगा लिया।
उस समय आदमी समझते थे कि जो जबान से कह दी, वह लिखने से भी अधिक है। पैसे का मूल्य कम था, जबान का मूल्य अधिक था। प्रामाणिकता का यह एक चित्र है। १२४ र धर्म के सूत्र
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