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है और मौत का भय नहीं सताता। ममत्व-विसर्जन से जो ताकत पैदा होती है, वह बटोरने से नहीं मिलती।
आत्मा भिन्न है, पुद्गल भिन्न है, यह आत्मसाधना का मन्त्र है। पूज्यपाद की भाषा में-'जीवोऽन्यः पुद्गलश्चान्यः इत्यसौ तत्त्व-संग्रहः-' आत्मा भिन्न है और पुद्गल भिन्न है, यही तत्त्व है।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने परमात्मा को समझ लिया।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने बन्धन को समझ लिया।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने बन्धन के हेतु को समझ लिया।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने संवर को समझ लिया।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने संवर के हेतु को समझ लिया।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने निर्जरा को समझ लिया।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने मोक्ष को समझ लिया।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने दुःखों को समझ लिया।
जिसने आत्मा को समझ लिया, उसने दुःख-मुक्ति के उपायों को समझ लिया।
आत्मा को समझे बिना धर्म का बोध नहीं होता। देव, गुरु और धर्म-ये तीन धर्म के मूल हैं। देव कौन है? आत्मा।
१२० म धर्म के सूत्र
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