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गुरु कौन है? आत्मा। धर्म क्या है? आत्मा।
आत्मा को छोड़ दीजिए-देव देव नहीं रहेगा, गुरु गुरु नहीं रहेगा, धर्म धर्म नहीं रहेगा। देव में देवत्व आता है आत्मा से। आत्मा जागृत होने से महावीर हमारे देव हो गए। गुरु गुरु हो जाता है जब हमारी आत्मा जागृत हो जाती है। जब बाहुबली से कहा गया कि भरत तुम्हारा बड़ा भाई है, उसका विनय करो, तो बाहुबली ने कहा
'गुरौ प्रशस्यो विनयो, गुरुर्यदि गुरुर्भवेत् । गुरौ गुरुगुणै_ने, विनयोपि त्रपास्पदम् ॥'
दूत! भरत से कह देना-गुरु के प्रति विनय करना प्रशंसनीय है, यदि गुरु वास्तव में गुरु हो। यदि गुरु बड़प्पन से हीन हो तो उसके सामने विनय करना लज्जाजनक है।
भरत की आत्मा जागी नहीं है। यदि जाग जाती तो वह अट्ठानवे भाइयों को लूटता नहीं। बड़े चाहते हैं, छोटे हमारा सम्मान करें। बिना गुरुत्व के पूजा चाहना सरल है, किन्तु पूजा को पचाना कठिन है। बड़प्पन को पचाना जटिल कार्य है। उसे वही पचा सकता है जिसने आत्मा को समझा है। भगवान महावीर ने कहा है-आत्मवान् के लिए पूजा, प्रतिष्ठा लाभकर है और अनात्मवान् के लिए हानिकर है। आत्मवान् सोचता है-कहीं मेरे द्वारा ऐसा कार्य न हो जिससे पूजा करने वालों को धोखा मिले। अनात्मवान् ऐसा नहीं सोचता।
आत्मा को निकाल देने पर भगवान का सारा धर्म समाप्त हो जाएगा। यदि धर्म को रखना है तो आत्मा की सुरक्षा करनी होगी।
धार्मिक की कसौटी १२१
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